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डीकेएस अस्पताल : ऑक्सीजन प्लांट बंद, प्रति माह 20 लाख तक का अतिरिक्त भुगतान, 400 सिलिंडर प्रतिदिन बाहर से मंगवाये जा रहे

बिगुल

रायपुर. प्रदेश के सबसे बड़े डीकेएस अस्पताल परिसर में ऑक्सीजन निर्माण के लिया बना ऑक्सीजन प्लांट बंद पड़ा हुआ है. जब हम ऑक्सीजन प्लांट को देखने पहुंचे तो ऑक्सीजन प्लांट में ताले जड़े हुए मिले.

कोरोना के वक्त ऑक्सीजन का निर्माण करने के लिए अस्पताल में नया ऑक्सीजन प्लांट खोला गया था ताकि लोगों को समय से ऑक्सीजन की सुविधा प्राप्त हो सके, लेकिन ऑक्सीजन प्लांट की तस्वीर इसके उलट थी. पता चला की ऑक्सीजन प्लांट पिछले कुछ दिनों से नहीं बल्कि 2 से ढाई सालों से बंद पड़ा हुआ है लेकिन इसका सुध लेने वाला कोई नहीं है. यहां ऑक्सीजन का निर्माण होना बंद हो गया है.

बता दें कि दाऊद कल्याण सिंह अस्पताल में ऑक्सीजन प्लांट खोला गया था लेकिन सुनकर आपको आश्चर्य होगा कि इसी अस्पताल में ऑक्सीजन की आपूर्ति बाहर से होती है. राजधानी रायपुर के डीकेएस अस्पताल में ऑक्सीजन प्लांट होने के बावजूद ऑक्सीजन सिलिंडर बाहर से प्राइवेट जगह से मंगवाया जाता है. बाहर से आने वाले ऑक्सीजन सिलेंडर से ही अस्पताल में इसकी आपूर्ति होती है.

जानकारी के मुताबिक प्रति दिन अस्पताल में 400 सिलिंडर बाहर से मांगवाई जाती है. जिसके लिए महीने में 18 से 20 लाख रुपए का भुगतान किया जाता है. इस हिसाब से एक साल में 1 करोड़ से ज्यादा का खर्च अस्पताल में ऑक्सीजन सिलिंडर आपूर्ति के लिए किया जाता है. अस्पताल में ऑक्सीजन सिलिंडर लाने ले जाने वाले मजदूर बताते हैं कि करोड़ो रुपए का मशीन प्लांट के अंदर धूल खा रहा है लेकिन इसके बावजूद यहां ऑक्सीजन का निर्माण नहीं हो रहा है.

एयर कंप्रेसर सिस्टम की यूनिट बंद
ऑक्सीजन प्लांट तो बंद है ही इसके साथ ही अस्पताल में संचालित मेडिकल एयर+ वैक्यूम प्लांट का भी हालात बद से बदतर है. इस प्लांट से निर्माण होने वाले मेडिकल एयर का उपयोग मरीजों के इलाज के लिए किया जाता है, लेकिन जिस यूनिट में इसका निर्माण होता है उसकी तस्वीर देखकर आप चौंक जाएंगे. मेडिकल एयर निर्माण वाले प्लांट में मशीने धूल खाते हुई मिली. यहां रखे गए एयर कंप्रेसर सिस्टम की यूनिट बंद पड़ी हुई थी. केवल एक सिस्टम चालू हलात में था. इसके अलावा प्लांट का कंट्रोल यूनिट ही धूल की चादर में ढका हुआ मिला.

इसी तरह मेडिकल एयर प्लांट में बैक्टीरिया फ़िल्टर करने वाला सिस्टम भी बंद हालात में मिला. न मीटर काम कर रहा था न ही कोई इलेक्ट्रिक स्विच और सिग्नल और तो और मेडिकल एयर निर्माण वाले प्लांट में इंजीनियर और टेकनीशियन का भी अता- पता नहीं था. एक प्लांट को सुचारु ढंग से चलाने के लिए इंजीनियर और सफाईकर्मी की अनिवार्य रूप से जरूरत होती है लेकिन यहां दोनों नहीं थे. पूरे प्लांट में हर जगह कचरा फैला हुआ था.

लोगों को नहीं मिल रही सुविधा
जब हमने अस्पताल में काम करने वाले कर्मचारियों से बातचीत की तो पता चला कि यहां लगे ऑक्सीजन प्लांट में करोड़ो रुपए खर्च हुए लेकिन ये हमेशा बंद रहता है. इसके अलावा मेडिकल एयर यूनिट में पेशेवर इंजीनियर या इलेक्ट्रीशियन से काम करवाने के बजाय अस्पताल के वार्ड बॉय से काम करवाया जा रहा है. जिन्हें मेडिकल एयर यूनिट के बारे में कुछ जानकारी ही नहीं है. इसके साथ ही स्टाफ बॉय से ही ऑक्सीजन के सिलेंडर को भी उठावाया जाता है. जब हम ऑक्सीजन प्लांट बंद होने का कारण जानने अस्पताल अधीक्षक डॉ शिप्रा शर्मा के पास पहुंचे तो उन्होंने बात करने से इनकार कर दिया.अब सवाल आखिरकार यह उठता है कि लाखों करोड़ों रुपए खर्च कर बनाया गया ऑक्सीजन प्लांट के बंद होने का जिम्मेदार कौन है और अगर आने वाले समय में ऑक्सीजन की जरूरत पड़ती है तो इसकी आपूर्ति कैसे होगी.

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