मध्यप्रदेश

MP : 80 हजार हेक्टेयर में सोयाबीन की बोवनी, पोर्टल पर फसल का रिकॉर्ड ही दर्ज नहीं, 784 किसानों के हुए पंजीयन

बिगुल

दमोह जिले में पोर्टल पर फसल का रिकार्ड दर्ज न होने और सर्वर डाउन होने से किसानों की सोयाबीन की फसल समर्थन मूल्य पर बेचने के लिए पंजीयन नहीं हो पा रहे हैं। जबकि 80 हजार हेक्टेयर में इस बार सोयाबीन की बोनी की गई है।

बता दें गेहूं कि तरह इस साल पहली बार सोयाबीन की फसल भी समर्थन मूल्य पर खरीदी जाएगी। इसके लिए 25 अक्तूबर से खरीदी शुरू होगी, लेकिन बार-बार सर्वर डाउन होने एवं गिरदावरी को पोर्टल पर अपलोड न किए जाने से अभी तक महज 784 किसानों का ही पंजीयन हो पाया है, जिससे किसानों को पंजीयन कराने के लिए बार-बार चक्कर लगाने पड़ रहे हैं। इधर, पंजीयन में आ रही दिक्कतों की वजह से किसान मंडी में ही अपनी उपज लेकर पहुंचने लगे हैं। शहर के सागर नाका कृषि उपज मंडी में अन्य फसलों की अपेक्षा सबसे ज्यादा सोयाबीन की आवक हो रही है। जहां पर किसानों को समर्थन मूल्य से 500 से 600 रुपये का नुकसान उठाना पड़ रहा है।

गौरतलब है कि शासन द्वारा समर्थन मूल्य का रेट 4,892 रुपये प्रति क्विंटल निर्धारित किया गया है। जबकि मंडी में किसानों को 4,280 रुपये प्रति क्विंटल भाव मिल रहे हैं। दमोह जिले में इस बार 80 हजार हेक्टेयर में सोयाबीन की बोवनी की गई थी। ऐसे में करीब 25 हजार किसानों के पंजीयन होना है। लेकिन अभी तक नाममात्र के पंजीयन हुए हैं।

मंडी पहुंचे किसान सुरेश ने बताया कि पहले भी दो बार आ चुके हैं। उस समय बताया गया था कि गिरदावरी अपडेट नहीं हुई है, जिससे प्रक्रिया आगे नहीं बढ़ी। अब सर्वर डाउन बता रहा है। शहर के निजी साइबर कैफे संचालक ने बताया कि अधिकांश किसानों फसल की गिरदावरी पोर्टल पर अपलोड नहीं हुई है, जिससे पंजीयन में बार-बार समस्या आ रही है। कई किसानों के खसरा नंबर तो कई किसानों की फसल गलत दर्ज है, जिससे पंजीयन नहीं हो पा रहे हैं। 20 किसानों में से महज 4 से 5 किसानों का ही पंजीयन हो पाता है।

समर्थन मूल्य की खरीदी में अभी 10 दिन का समय शेष है। ऐसे में किसान कृषि उपज मंडी में अपनी उपज लेकर पहुंचने लगे हैं। पालर गांव निवासी किसान वीरेंद्र पटेल, तीरथ पटेल ने बताया कि रबी सीजन की फसल की बोवनी के लिए खाद, बीज के लिए पैसों की जरूरत है। इसलिए मंडी में उपज लेकर आए हैं। ताकि समय पर बोवनी कर सकें। किसान राजेंद्र लोधी ने बताया कि पंजीयन कराने में काफी झंझट हो रही है। इसलिए मजबूरी में मंडी में उपज लेकर आए हैं। उन्होंने बताया कि कई व्यापारी तो गांव से ही उपज ले जा रहे हैं।

गिरदावरी के बाद होता है पंजीयन
कृषि विभाग के सलाहकार गिरवर पटेल ने बताया कि गिरदावरी के जरिए किसानों को फसल बीमा और उपार्जन जैसी योजनाओं में फायदा मिलता है। गिरदावरी में किसान की जमीन के कुल क्षेत्रफल में बोई गई फसल का नाम दर्ज किया जाता है। इसके लिए पटवारी गांव के भूमि मालिकों और सिकमी/बटाईदार एवं वन पट्टाधारी किसानों की मौजूदगी में जमीन का निरीक्षण करता है। इसमें कुल रकबे में बोई गई फसल ऑनलाइन दर्ज कराई जाती है। इसके लिए किसान का नाम, खेत का सर्वे नंबर और मोबाइल नंबर दर्ज करना होता है। गिरदावरी होने के बाद ही वह अपनी उपज बेचने के लिए पंजीयन करा सकता है।

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