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दम तोड़ रही चूना नगरी कटनी की पहचान, सरकार की अनदेखी से 50 फीसदी व्यापार बंद, क्या बोले व्यापारी?

बिगुल
कटनी, जिसका इतिहास करीब 150 साल पुराना है, यहां से बना चूना देश के कोने-कोने तक जाता था, चाहे फिर वो छत्तीसगढ़, महाराष्ट्र, पश्चिम बंगाल हो या फिर जम्मू कश्मीर। लेकिन, अब लोग कटनी के चूने का स्वाद भूलते जा रहे हैं क्योंकि, यहां का चूना उद्योग समाप्ति की ओर है। व्यापारियों ने बताया कि कटनी में पहले 150 से अधिक इकाईयां थी जिसमें 280 से ज्यादा भट्टे गुलजार हुआ करते थे, लेकिन सरकार की अनदेखी और गुणवत्ताहीन लाइम स्टोन से अब कारोबार में दम नहीं बचा है। इसलिए लोग बंद करते हुए राजस्थान में शिफ्ट होते जा रहे है।

कटनी चूना उद्योग में 3 पीढ़ियों से काम कर रहे बड़े व्यापारी अनिल नागरा ने बताया की हमारे पास पहले 8 चूना भट्टे थे, जिससे बनाने वाला चूना मध्यप्रदेश के आस पास जिलों से लेकर कई राज्यों में जा था, लेकिन अब पूरा कारोबार ठप पड़ा है। अब महज 2 चूना भट्टा चालू हैं, जिसमें बना माल बेचने में ही दिक्कत होती है। क्योंकि, पहले जैसा पत्थर न तो खदान से निकलता है न ही पहले जैसा चूना बनता है। कुछ व्यापारियों ने हिम्मत बांध रखी थी, लेकिन लघु उद्योग से मिलने वाले कोयले की क्षमता कम करते हुए सरकार ने भी कमर तोड़ दी।

व्यापारी बताते हैं कि पहले चूना उद्योग मुड़वारा में ही संचालित होते थे, लेकिन कटनी के जिला घोषित होते ही हम व्यापारियों ने जनहित में शहर से बाहर झुकेही, कैमोर समेत रिहायशी इलाकों से कोसों दूर होकर कारोबार संचालित करने लगे। व्यापार की बदहाली पर चूना उत्पादन संघ के जिलाध्यक्ष मुन्ना भार्गव ने कहा कि कटनी में संचालित करीब 50 प्रतिशत से ज्यादा चूना भट्टा बंद हो गए हैं। अब अब करीब 100 बचे हैं, साल में सिर्फ दिवाली के वक्त 70 प्रतिशत व्यापारी हिम्मत करके कारोबार करते थे, लेकिन नीलामी में खरीदा कोयला, भाड़ा, काम करने वाली लेवर से लेकर चूना भेजने का कॉस्ट(ट्रांसपोर्टेशन) पहले से कई गुना महंगी हो गई है।

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