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रिश्वतखोरी पर कोर्ट का बड़ा फैसला, सिर्फ रिश्वत की बरामदगी से दोष सिद्ध नहीं, हाईकोर्ट ने आरोपी मंडल संयोजक शिक्षा विभाग को किया बरी

बिगुल
भ्रष्टाचार के एक मामले में हाईकोर्ट ने बड़ी राहत देते हुए आरोपी मंडल संयोजक शिक्षा विभाग को बरी कर दिया है। पीड़ित को 12 वर्ष बाद हाई कोर्ट से न्याय मिला है। मामले में पहले से बर्खास्त कर्मचारी ने रिश्वत लेने की शिकायत की थी। मुख्य न्यायाधीश रमेश सिन्हा की सिंगल बैंच ने स्पष्ट किया, कि केवल रिश्वत की राशि की बरामदगी पर्याप्त नहीं है, जब तक यह सिद्ध न हो जाए कि आरोपी ने स्वेच्छा से पैसे को घूस के रूप में स्वीकार किया।मामले में विशेष न्यायाधीश (भ्रष्टाचार निवारण) रायपुर ने 2017 में आरोपित को दो साल की सजा सुनाई थी।

शासकीय प्राथमिक विद्यालय में शिक्षाकर्मी और आदिवासी हास्टल के तत्कालीन अधीक्षक बैजनाथ नेताम ने आरोप लगाया था, कि मंडल संयोजक लवन सिंह चुरेन्द्र ने जनवरी 2013 के छात्रवृत्ति स्वीकृति के लिए 10,000 की रिश्वत मांगी थी। उसने 2,000 अग्रिम देकर शेष 8,000 देने का वादा किया गया। बाद में शिकायतकर्ता ने एसीबी में शिकायत दर्ज की और आरोपी को ट्रैप कर गिरफ्तार कराया। ज्ञात हो, कि शिकायतकर्ता के खिलाफ छात्रवृत्ति राशि में गड़बड़ी करने की शिकायत हुई थी। इस मामले की जांच के लिए बीआरसी लवन सिंह चुरेन्द्र को जांच अधिकारी नियुक्त किया गया था। जांच में शिकायत सही पाए जाने पर उन्होंने रिकवरी आदेश जारी किया।

मामले की सुनवाई के दौरान कोर्ट ने कहा कि, शिकायतकर्ता की विश्वसनीयता संदिग्ध है। वह पहले ही सेवा से बर्खास्त किया जा चुका था। जिस छात्रवृत्ति की मंजूरी को लेकर रिश्वत मांगे जाने का आरोप है, वह पहले ही मंजूर हो चुकी थी और राशि भी निकाल ली गई थी। आरोपी स्वयं शिकायतकर्ता के खिलाफ 50,700 की छात्रवृत्ति गबन की जांच कर रहा था, जिस पर वसूली के निर्देश भी दिए गए थे। इस कारण शिकायतकर्ता की शिकायत को बदले की भावना से प्रेरित माना गया। शिकायतकर्ता द्वारा दर्ज की गई आडियो रिकार्डिंग की सत्यता पर भी सवाल उठे। न तो आवाज की पुष्टि कराई गई, न ही फारेंसिक जांच कराई गई। ट्रैप पार्टी में मौजूद मुख्य गवाहों की गवाही विरोधाभासी पाई गई।

मुख्य न्यायाधीश ने कहा कि भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम के तहत दोषसिद्धि के लिए यह अनिवार्य है कि रिश्वत की मांग और उसकी स्वीकारोक्ति स्पष्ट रूप से सिद्ध हो। केवल पैसे की बरामदगी से अपराध सिद्ध नहीं होता। कोर्ट ने बी. जयाराज बनाम आंध्रप्रदेश राज्य और नीरज दत्ता बनाम दिल्ली सरकार सहित सुप्रीम कोर्ट के अनेक निर्णयों का हवाला देते हुए आरोपी को संदेह का लाभ देते हुए बरी कर दिया। कोर्ट ने कहा कि आरोपी पहले से जमानत पर है, इसलिए जमानत बंधपत्र अगले छह महीने तक प्रभावी रहेंगे, ताकि अगर राज्य सरकार सुप्रीम कोर्ट जाना चाहे तो उचित कदम उठा सके।

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