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हाईकोर्ट: छत्तीसगढ़ सरकार में 14 मंत्री बनाए जाने की संवैधानिकता को चुनौती देने वाली याचिका पर हुई सुनवाई

बिगुल
छत्तीसगढ़ सरकार में 14 मंत्री बनाए जाने की संवैधानिकता को चुनौती देते हुए लगी दूसरी याचिका पर सोमवार को सुनवाई हुई। इसे कांग्रेस पार्टी के संचार प्रमुख सुशील आनंद शुक्ला ने दायर किया है। हाईकोर्ट ने इसे इसी तरह की एक अन्य याचिका के साथ सुनने का निर्णय लिया है। अब आने वाले दिनों में हाईकोर्ट की डिवीजन बेंच में एकसाथ दोनों मामले में सुनवाई होगी।

सामाजिक कार्यकर्ता बसदेव चक्रवर्ती ने हाईकोर्ट में एक जनहित याचिका लगाई है। इस याचिका में भी मंत्रिमंडल में 14 मंत्री बनाए जाने को असंवैधानिक बताया गया था। याचिकाकर्ता ने पीआईएल में सामान्य प्रशासन विभाग, मुख्यमंत्री समेत सभी 14 मंत्रियों को पक्षकार बनाया है। याचिका में छत्तीसगढ़ में 90 विधानसभा सीटों की तुलना में 14 मंत्री बनने पर 15% की सीमा क्रॉस करने की बात कही गई है, जो संविधान के अनुच्छेद 164(1 ए) का उल्लंघन बताया गया है। इस मामले में चीफ जस्टिस रमेश सिन्हा और जस्टिस बीडी गुरु की डिवीजन बेंच में सुनवाई चल रही है। पिछले सुनवाई में शासन की ओर से अधिवक्ताओं ने बताया कि मंत्रिमंडल की सीमा तय करने से जुड़ा एक मामला सुप्रीम कोर्ट में पेंडिंग है, जिसमें 164 (1 ए) की व्याख्या होनी है। यह मामला मध्य प्रदेश शिवराज सिंह कैबिनेट का था, जिसमें मंत्रिमंडल की न्यूनतम और अधिकतम सीमा के लिए भी याचिका लगी हुई है। सुप्रीम कोर्ट में लगे केस की कॉपी भी छत्तीसगढ़ सरकार के अधिवक्ताओं ने अदालत के समक्ष पेश की थी, जिस पर चीफ जस्टिस ने कहा था कि जब वहां मामला लंबित है तो वहीं से डिसाइड करवाइए

पिछली सुनवाई में याचिकाकर्ता के अधिवक्ता ने इस पर आपत्ति की और कहा कि वह मामला इफेक्चुअल हो गया है। तब राज्य सरकार के अधिवक्ताओं ने बताया कि मामला इफेक्चुअल नहीं हुआ है। फिर चीफ जस्टिस ने पूछा कि इस मामले में आखिरी सुनवाई कब हुई थी। राज्य सरकार के अधिवक्ताओं ने बताया कि 22 जुलाई 2020 को आखिरी बार मामला लगा था। उसमें खारिज करने संबंधी कोई आदेश जारी नहीं हुआ है और यह मामला अभी स्टैंड है।

पिछली सुनवाई में चीफ जस्टिस रमेश सिन्हा ने दोनों पक्षों को सुनने के बाद कहा कि चूंकि मामला सुप्रीम कोर्ट में लगा है तो फिर वहीं से निर्णय करवाइए, फिर कोई विवाद ही नहीं रहेगा। याचिकाकर्ता ने इस पर अदालत से दो हफ्ते का समय मांगते हुए कहा कि दो हफ्ते में हम सुप्रीम कोर्ट से उस मामले में निर्णय या कोई दिशा-निर्देश ले आते हैं, तब तक याचिका खारिज न की जाए। पिछली सुनवाई में चीफ जस्टिस ने इस मामले में याचिकाकर्ता को समय देते हुए अगली सुनवाई तीन हफ्ते बाद रखी थी।

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