ब्रेकिंग : मोजो मशरूम-फैक्ट्री में बंधक बने 120 बाल मजदूरों को छुड़ाया, भूखे-प्यासे कर रहे थे काम

बिगुल
रायपुर के खरोरा स्थित मोजो मशरूम फैक्ट्री में बंधक बनाये गये 120 बाल मजदूरों को मुक्त कराया गया है। नई दिल्ली से 17 नवंबर की शाम आई मानवाधिकार आयोग की टीम, महिला बाल विकास विभाग, पुलिस और गैर सरकारी संगठन एसोसिएशन फॉर वॉलंटरी एक्शन (एवीए) ने संयुक्त रूप से छापा मारकर बंधक बने बाल मजदूरों को छुड़ाया। चार घंटे तक चली इस कार्रवाई में 14 से 17 साल की उम्र की 80 लड़कियां और 40 लड़के बाल श्रम से मुक्त कराए गए।
इन राज्यों के थे बच्चे
यहां पर उन्हें बेहद अमानवीय हालात में रखकर काम कराया जा रहा था। एक कैदी की तरह रखकर इनका शोषण किया जा रहा था। ये बच्चे पश्चिम बंगाल, ओड़ीशा, मध्य प्रदेश, झारखंड और असम के जनजातीय इलाकों के थे। बताया जाता है कि स्थानीय एजेंट इन बच्चों को ट्रैफिकिंग के जरिए उनके गृह राज्यों से लाए और यहां काम पर लगा दिया। इनमें से कुछ बच्चे जो अब 17 साल के हैं, उन्हें छह साल पहले यहां लाया गया था ।
इस मामले में एवीए ने राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग को पत्र लिखकर कार्रवाई की मांग की थी। राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग के सदस्य प्रियंक कानूनगो ने रायपुर के वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक लाल उमेद को सूचित किया जिन्होंने डीएसपी नंदिनी ठाकुर के नेतृत्व में एक टीम गठित कर तत्काल छापे की कार्रवाई की। बच्चों को तत्काल सुरक्षा में लेते हुए उनकी काउंसलिंग की गई और कानूनी प्रक्रिया शुरू की गई।
छोटे और अंधियारे कमरे में रखा था बच्चों को
एवीए ने कहा कि इन बच्चों का गंभीर रूप से शोषण किया जा रहा था। उनकी आवाजाही पर पाबंदी लगा दी गई थी। उन्हें डरा-धमका कर रखा जाता था। यह मानव दुर्व्यापार (ह्यूमन ट्रैफिकिंग) और बंधुआ मजदूरी के समान है। मुक्त कराए गए बच्चों ने कहा कि उन्हें फैक्टरी में ही बने छोटे और अंधियारे कमरे में रखा जाता था, उनसे 12-15 घंटे काम कराये जाते थे। रात को शायद ही कभी खाना दिया जाता हो।
जस्ट राइट्स फॉर चिल्ड्रेन के संस्थापक भुवन ऋभु ने कहा कि कल्पना ही की जा सकती है कि हाड़ कंपा देने वाली ठंड में 12-15 घंटे काम करने वाले एक बच्चे की क्या हालत होगी? यह ट्रैफिकिंग जैसे संगठित अपराध का सबसे घिनौना चेहरा है और विकसित भारत की राह में सबसे बड़ा रोड़ा। मैं रायपुर की इस मशरूम प्रसंस्करण यूनिट से ट्रैफिकिंग के शिकार 100 बच्चों को मुक्त कराने के लिए राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग, स्थानीय पुलिस और एसोसिएशन फॉर वॉलंटरी एक्शन को बधाई देता हूं। सरकार को इस मामले के त्वरित निपटारे और और इन बच्चों का पुनर्वास सुनिश्चित करने की दिशा में तत्काल कदम उठाना चाहिए।
मशरूम खतरनाक रसायन मिलाने के आरोप
मोजो मशरूम प्रसंस्करण इकाई न्यूनतम तापमान में मशरूम उत्पादन के लिए जानी जाती है, जहां बड़े मशीनरी उपकरण और पतले रॉड वाली तीन- मंजिला जालियां मशरूम पैकेट रखने के लिए इस्तेमाल की जाती हैं। आरोप है कि बच्चों को इन जालियों पर चढ़ाया जाता था और बिना किसी सुरक्षा उपकरण के उन पर मशरूम पैकेट टांगने को कहा जाता था। आरोप है कि इस प्रक्रिया में इस्तेमाल की जाने वाली मिट्टी में फॉर्मलिन जैसे खतरनाक रसायन मिलाए जाते थे, जो सांस के जरिए शरीर में जाने से कैंसर पैदा कर सकता है। लंबे समय तक या उच्च मात्रा में फार्मलिन के संपर्क से गले में सूजन के कारण या फेफड़ों में रासायनिक जलन से मृत्यु तक हो सकती है।
तीन महीनों में उसी प्रतिष्ठान पर दूसरी बार छापेमारी
एसोसिएशन फॉर वॉलंटरी एक्शन के वरिष्ठ निदेशक मनीष शर्मा ने कहा कि इकाई में मौजूद बच्चे भूखे थे, जख्मी थे, उदास और डरे हुए थे। वहां मौजूद खतरों को देखकर हम स्तब्ध रह गए, लेकिन यह बचाव सिर्फ एक अस्थायी जीत है। यह तीन महीनों में उसी प्रतिष्ठान पर दूसरी छापेमारी है और यह तथ्य स्थापित करता है कि इकाई के मालिकों की इसमें एक स्पष्ट और खतरनाक भूमिका है। इसके बावजूद एफआईआर में प्रासंगिक धाराएं शामिल नहीं की गईं।
बता दें कि एसोसिएशन फॉर वॉलंटरी एक्शन बाल अधिकारों की सुरक्षा के लिए 451 जिलों में काम कर रहे नागरिक समाज संगठनों के देश के सबसे बड़े नेटवर्क जस्ट राइट्स फॉर चिल्ड्रेन (जेआरसी) का सहयोगी संगठन है। देशभर में फैले 250 नागरिक समाज संगठनों के नेटवर्क के जरिए जेआरसी कानूनी हस्तक्षेपों और बच्चों को मुक्त कराने के अभियानों की अगुवाई करता है।



