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राम मंदिर : शंकराचार्य अविमुक्तेश्वरानंद रामजन्मभूमि में शंकराचार्यों के योगदान पर बोले : हम अदालत में लड़े और वे सड़कों पर..देखिए वीडियो

24 दिनों तक शंकराचार्य ने की बहस

शंकराचार्य अविमुक्तेश्वरानंद ने कहा कि अगर आज राम मंदिर में भगवान राम के आगमन की तैयारी हो रही है। उसमें शंकराचार्य का मुख्य योगदान रहा क्योंकि सड़क पर चिल्लाने से राम मंदिर नहीं बना है उसके लिए कोर्ट में पैरवी करनी पड़ी है। उन्होंने आगे कहा कि 90 दिन तक कोर्ट में बहस हुई। जिसमें 50 दिन तक मुसलमानों की तरफ से बहस हुई ,बचे हुए 40 दिन हिंदुओं की तरफ से बहस हुई। उन 40 दिनों में 24 दिनों तक शंकराचार्य ने बहस की। मंदिर के 350 प्रमाण कोर्ट में पेश किए थे जिसके बाद रामलला की वापसी हो रही है। उन्होंने आगे कहा कि मीडिया शंकराचार्य के योगदान को दिखाना ही नहीं चाहते हैं। दुनिया भर के सामने हमारे योगदान को क्यों नहीं ले गया मीडिया?

स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती जी महाराज ने अपने प्रमुख शिष्य अविमुक्तेश्वरानन्द सरस्वती को इस बात का अधिकार दिया कि वो भारत के प्रत्येक सनातनी हिन्दुओं के घर से स्वर्णदान ले और इस प्रकार 1008 किलो स्वर्ण एकत्रित करके, रामलला के मन्दिर में उनके सिंहासन, उनके गुम्बद आदि में मण्डित किया जाए जिससे संसार मे हिन्दुओं के हृदयसम्राट भगवान रामलला के भव्य दिव्य मन्दिर की कीर्ति युगों युगों तक फैलती रहें। इस आदेश को पाकर स्वामिश्री अविमुक्तेश्वरानन्द सरस्वती जी ने स्वर्णालय श्रीरामलला स्वर्ण संग्रह अभियान शुरू कर दिया.

प्राण प्रतिष्ठा पर धर्म शास्त्र क्या कहते हैं ?

राम मंदिर में प्राण प्रतिष्ठा पर धर्म शास्त्र को लेकर तर्क दिया कि लोगों के मन में धारणा बन गई है कि मूर्ति में प्राण प्रतिष्ठा होगी। हालांकि धर्म शास्त्र ये कहते हैं मूर्ति में तो प्राण प्रतिष्ठा होगी ही क्योंकि वो मंदिर का एक अंग है लेकिन मंदिर में प्राण प्रतिष्ठा होगी। धर्म शास्त्र के अनुसार प्राण शरीर के अंदर होते हैं और शरीर मंदिर है मूर्ति नहीं है और अभी तक मंदिर पूरा नहीं बना है। ऐसे में अगर अधूरे शरीर में प्राण डाल देना उचित नहीं होगा।

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