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बिलासपुर हाईकोर्ट ने निचली अदालत का फैसला पलटा, हत्या के मामले में बरी दोषियों को सुनाई सजा

बिगुल
बिलासपुर हाईकोर्ट ने 2005 में हुई हत्या के एक मामले में निचले कोर्ट द्वारा बरी करने के फैसले को पलटकर सात अभियुक्तों को दोषी ठहराया और आजीवन कारावास की सजा दी है। हाईकोर्ट ने महत्वपूर्ण निर्णय दिया कि यदि किसी घायल चश्मदीद गवाह की गवाही विश्वसनीय हो और अन्य साक्ष्यों से उसकी पुष्टि होती हो तो केवल मामूली विरोधाभासों के आधार पर उसे खारिज नहीं किया जा सकता।

प्रकरण के अनुसार, बस्तर के कांकेर क्षेत्र में 17-18 मार्च 2005 की रात लगभग 25 सशस्त्र नक्सलियों ने ग्रामीण रघुनाथ के घर पर हमला किया। अभियुक्त सूरजराम, नोहर सिंह, धनीराम, दुर्जन, चैतराम, रामेश्वर और संतोष भी इस दल में शामिल थे। मृतक का बेटा लच्छूराम, जो खुद भी घायल हुआ, ने एफआईआर दर्ज कराई। आरोप है कि रघुनाथ को रस्सियों से बांधकर, डंडों और लात-घूंसों से पीट-पीट कर मार डाला गया। लच्छूराम को भी बांधकर पीटा गया और बाद में उसने ग्रामीणों को घटना की जानकारी दी।

पोस्टमार्टम में रघुनाथ के सीने पर चाकू से वार और भीतरी रक्तस्राव को मृत्यु का कारण बताया गया, जिसे डॉक्टर ने हत्या पाया। ट्रायल के दौरान कांकेर के अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश ने अभियुक्तों को संदेह का लाभ देते हुए 2010 में बरी कर दिया था। कोर्ट ने गवाहों की गवाही में विरोधाभास और कुछ नामों को एफआईआर में देर से जोड़ने को आधार बनाया। निचले कोर्ट के इस निर्णय को 10 फरवरी 2010 को राज्य शासन ने हाईकोर्ट में चुनौती दी।

चीफ जस्टिस रमेश सिन्हा, जस्टिस रवींद्र कुमार अग्रवाल की डिवीजन बेंच ने सुनवाई के दौरान मृतक के बेटे लच्छूराम और मृतक की पत्नी पिचोबाई की गवाहियों के साथ-साथ चिकित्सकीय और फॉरेंसिक साक्ष्यों की भी गहराई से समीक्षा की। कोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि घायल गवाह की गवाही को केवल इस आधार पर खारिज नहीं किया जा सकता कि उसमें कुछ मामूली विरोधाभास हैं। यदि अन्य आपराधिक साक्ष्य उसकी पुष्टि करते हैं तो उस आधार पर दोषसिद्धि की जा सकती है।

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