छत्तीसघाट

सरकारी कैलेण्डर से कांग्रेस का प्रचार, बृजमोहन अग्रवाल ने की चुनाव आयोग से तत्काल हटाने की मांग

बिगुल

रायपुर :- वरिष्ठ भाजपा विधायक और पूर्वमंत्री बृजमोहन अग्रवाल ने भारत निर्वाचन आयोग से मांग की है कि छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री ने जानबूझकर, दबावपूर्वक वर्ष 2023 के शासकीय कैलेण्डर में अक्टूबर-2023 नवम्बर-2023 और दिसंबर-2023 में अपनी (मुख्यमंत्री) फोटो छपवाई है और राज्य सरकार का गुणगान भी है। यह सीधे तौर पर आचार संहिता का उल्लंघन है। अग्रवाल ने कहा कि ये एक सोची-समझी रणनीति के तहत शासकीय धन से प्रचार करने का कुत्सित प्रयास है। अग्रवाल ने यह भी जानकारी दी है कि शासकीय कैलेण्डर बड़ी छोटी साइज में लाखों की संख्या में छपवाने के आलावा, बड़ी संख्या में टेबल कैलेण्डर भी हजारों की संख्या में छपे हैं।

करोड़ों रूपये का यह खर्च चुनाव आयोग, कांग्रेस पार्टी के चुनाव खर्च में शामिल करे। अग्रवाल ने चुनाव आयोग से यह भी मांग की है कि सभी सरकारी कार्यालयों से तत्काल सभी प्रकार के प्रचार वाले कैलेण्डर आज ही हटाने के निर्देश दे। अग्रवाल ने यह भी मांग की है कि आयोग इन कलेंडरों को जब्त करने का निर्देश भी पुलिस को दे। साथ ही मंत्रालय सहित सभी विभागाध्यक्ष कार्यालयों में कैलेण्डर, टेबल कैलेण्डर हटाया जाय, इसके लिए सीधे तौर पर मुख्य सचिव को जवाबदेह माना जाय।

अग्रवाल ने सत्ताधारी दल पर कांग्रेस पर सवाल खड़ा किया है कि लोकतंत्र में परम्परायें कानून का रूप होती हैं। कांग्रेस एक पुरानी और सत्ता में कई वर्षों तक रहने के बाद, इस तरह की स्तरहीन हरकत कर रही है, साफ है उसे लोकतंत्र में कतई विश्वास नहीं है। अग्रवाल ने मुख्यमंत्री पर हमला करते हुए कहा कि 5 साल गरीबों के लिए काम करने की बजाय, अपना फोटो छपवाने में ही निकाल दिये, अंत समय में भी आदत छुट्टी नहीं है।

अग्रवाल ने कहा कि मुख्यमंत्री अक्टूबर के महीने में बस्तर दशहरा के साथ शासकीय कैलेण्डर में फोटो डालकर अपना पाप धोना चाहते हैं। लेकिन मुख्यमंत्री ने जिस तरह से 5 साल तक आदिवासी धर्म-संस्कृति को धर्मान्तरण से खत्म करने की साजिश की है। उसे बस्तर के आदिवासी कभी नहीं भुला सकते। अग्रवाल ने मुख्यमंत्री को याद दिलाया कि जबरिया धर्म परिवर्तन में उनकी भूमिका है और जब आदिवासी समाज जबरिया धर्म परिवर्तन मैं उनकी भूमिका है और जब आदिवासी समाज जबरिया धर्म परिवर्तन के खिलाफ खड़ा हुआ, तो उन्होंने पूरे बस्तर और सरगुजा क्षेत्र में आदिवासी समाज को डराने के लिए “राष्ट्रीय सुरक्षा कानून” का लागू किया।

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