विवाद : धीरेन्द्र कृष्ण शास्त्री का बयान, एशिया का दो नम्बर चर्च तोड़ दीजिए, अमरजीत भगत बोले: धर्मांतरण के लिए हिन्दु धर्म जिम्मेदार
बिगुल
रायपुर. कथावाचक पं. धीरेन्द्र कृष्ण शास्त्री के एक बयान से धर्मांतरण का मुददा फिर गरमा गया है. राजधानी में आयोजित कथा के दौरान पत्रकारों से चर्चा करते हुए शास्त्री ने कहा कि एशिया के सबसे बड़े चर्च को उखाड़ फेंकना चाहिए क्योंकि वह धर्मांतरण को बढ़ावा दे रहा है. इसके पहले शास्त्री के ही सामने प्रदेश के मुख्यमंत्री विष्णु देव साय ने यह स्वीकार किया था कि जशपुर जिले में आदिवासियों को धर्मांतरण सालों से हो रहा है जिसे रोका जायेगा.
इसके बाद प्रदेश कांग्रेस और भाजपा के नेता इस मुददे पर आमने-सामने हो गए हैं. क्या छत्तीसगढ़ की सियासत में धर्मांतरण अब एक टेस्टेड फार्मूला है, पार्टी विशेष की घेराबंदी का या फिर ये प्रदेश में एक गंभीर मुद्दा है. सत्ता बदल चुकी है, विपक्ष नया है लेकिन मुद्दा वही पुराना, धार्मिक मंचों से लेकर सियासी गलियों तक धर्मांतरण पर तीखे होते स्वर बताते हैं कि 2024 के चुनाव में ये अहम मुद्दा हो सकता है.
बार-बार ये सवाल उठ रहा है या उठाया जा रहा है कि प्रदेश में बड़े स्तर पर हुए धर्मांतरण के लिए जिम्मेदार कौन है? हैदराबाद के फायर ब्रांड बीजेपी विधायक टी राजा सिंह ने छत्तीसगढ़ में बड़े स्तर पर धर्मांतरण के लिए बीती कांग्रेस सरकार को कोसा जिसके जवाब में कांग्रेस सरकार में संस्कृति मंत्री रहे अमरजीत भगत ने कहा कि आखिर हिंदुओं के किसी अन्य धर्म में जाने का कारण क्या होता है, हम ही लोगों को सहेजकर नहीं रख पाए. कुछ गलतियां रही होंगी कि लोग अलग टूटते हैं. भगत के इस बयान पर प्रतिक्रिया दी पूर्व मंत्री अजय चंद्राकर ने. उन्होंने कहा कि अमरजीत भगत को पढ़-लिखकर, समझकर बयान देना चाहिए. सांसद मोहन मंडावी ने आदिवासी संस्कृति के लिए धर्मांतरण को सबसे ज्यादा खतरनाक बताया.
धर्मांतरण बड़ी चुनौती : डॉ. अनिल द्विवेदी
प्रखर समाचार के संपादक डॉ. अनिल द्विवेदी ने कहा कि छत्तीसगढ़ में धर्मांतरण सालों से जारी है खासकर आदिवासी इसकी बड़ी कीमत चुका रहे हैं. ईसाई मिशनरियां लालच और सेवा के नाम पर उनके गले में क्रॉस डाल रही हैं. 1956 में सीपी बरार के मुख्यमंत्री रहे पं रविशंकर शुक्ल ने नियोगी कमीशन बिठाया था जिसने जांच करने के बाद अपनी रिपोर्ट में पाया था कि ईसाई मिशनरियां धर्मांतरण को बढ़ावा दे रही हैं. 1989 में यह सिद्ध हो चुका है जब जिला अदालत ने एक ईसाई नन को धर्मांतरण के आरोप में जिला बदर की सजा सुनाई थी, लगातार होते घर वापसी के आयोजन यह साबित करते हैं कि धर्मांतरण अभी रूका नही है बल्कि इसने और भी रूप धारण कर लिए हैं मसलन नाम नही बदला जा रहा लेकिन पूजा पद्धति और प्रतीक चिहन बदल दिए जा रहे हैं. कांग्रेस सरकार में एक आइपीएस अफसर ने पत्र लिखकर लगातार धर्मांतरण होने पर चिंता जाहिर की थी. पूर्व की रमन सरकार ने धर्मांतरण निषेध कानून लागू किया है लेकिन वह उतना प्रभावी और कारगर साबित नही हो सका.