मध्यप्रदेश

शिव साधक थीं देवी अहिल्या बाई, पति के निधन के बाद 28 साल संभाला राज्य, पूरे देश में कराए काम

बिगुल
देवी अहिल्या बाई होल्कर की 229वीं पुण्यतिथि रविवार को मनाई जाएगी। किसी राजा या रानी के इतने लंबे समय के बाद याद करने के विरले ही उदाहरण होंगे। ब्रिटिश प्रशासक और अंग्रेज अधिकारी सर जॉन मालकम ने मालवा के इतिहास पर कार्य किया था, उन्होंने देवी अहिल्या बाई को होल्कर राजवंश की श्रेष्टतम शासिका के रूप में उल्लेखित किया है।

देवी अहिल्या बाई द्वारा अपने कार्यकाल में देशभर में 8527 धार्मिक स्थल, 920 मस्जिदों और दरगाह, 39 राजकीय अनाथालय का निर्माण कराया। साथ ही उनके कार्यकाल में धर्मशालाओं, नर्मदा किनारे, देश में प्रमुख धर्मस्थलों पर नदियों किनारे के घाटों, कुंए, तालाब, बाबड़ियों और गोशालाओं ( उस समय इसे पिंजरापोल कहा जाता था) के निर्माण में आर्थिक मदद दी गई थी। अहिल्या बाई के कार्यकाल में होल्कर राजवंश में ही नहीं, बल्कि पूरे भारत में उनके द्वारा कार्य किए गए, जिनकी फेहरिस्त लंबी है।

अहिल्या बाई के कार्यकाल में आरंभ में यह कार्य खासगी के तहत होता था। होल्कर वंश के प्रथम शासक मल्हारराव ने प्रथम पेशवा बाजीराव से आग्रह किया था की मेरी पत्नी को कुछ जागीर प्रदान की जाए, उन्होंने उनकी पत्नी गौतमा बाई को खासगी (राज्य के कुछ गांवों से कर वसूली और रानियों को दी जाने वाली राशि, व्यक्तिगत संपत्ति) प्रदान की जिससे उन्हें आय होने लगी थी। 20 जनवरी 1734 के एक पत्र अनुसार गौतमाबाई को खासगी से आरम्भ में आमदनी 2 लाख 99 हजार 10 रुपए हुई थी। गौतमाबाई के निधन के बाद खासगी की आय का काम अहिल्या बाई देखती थीं। खासगी की अधिकांश आय का व्यय धार्मिक कार्यों पर होता था। यह खासगी ट्रस्ट आज की कायम है जो धार्मिक स्थलों की व्यवस्था देखता है।

अहिल्या बाई ने राजधानी महेश्वर को बनाया और उनके शिव के प्रति स्नेह और आदर भाव का पूर्ण ध्यान रखा गया। नर्मदा किनारे उन्होंने घाटों का निर्माण करवाया, उन्होंने देश भर के विद्वानों को महेश्वर में स्थाई रूप से बसाया और उन्हें वंशानुगत जागीरें भी प्रदान की थी। अहिल्या बाई ने संपूर्ण देश के विद्वानों को महेश्वर में नर्मदा तट पर संरक्षण दिया जिनमें मल्हार भट्ट मुल्ये, जानोबा पुराणिक, रामचंद्र रानाडे, काशीनाथ शास्त्री, दामोदर शास्त्री, निहिल भट्ट, भैया शास्त्री, मनोहर बर्वे, गणेश भट्ट, त्रियम्बक भट्ट, महंत सुजान गिरी गोसाबी, हरिदास आनंद राम प्रमुख थे।

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