मध्यप्रदेश

एमपी : पौधों को सुनाते हैं गायत्री मंत्र, वैज्ञानिक पद्धति से बनाया कमरा, कश्मीर से सीखी केसर की खेती

बिगुल
कश्मीर के बाहर केसर की खेती का सपना देखने वाले किसान अनिल जायसवाल ने अपने घर में एक अनोखी और प्रेरणादायक पहल की है। इंदौर के इस प्रगतिशील किसान ने अत्याधुनिक एयरोपॉनिक्स पद्धति का उपयोग करके अपने घर के कमरे में बिना मिट्टी के केसर उगाने का सफल प्रयोग किया है। केसर, जिसे “लाल सोना” भी कहा जाता है, दुनिया के सबसे महंगे मसालों में गिना जाता है और इसकी खेती अब तक मुख्य रूप से कश्मीर में ही होती आई है। जायसवाल का यह प्रयास न केवल केसर की खेती के क्षेत्र में एक नई शुरुआत का प्रतीक है, बल्कि इसे उगाने के तरीके में नवाचार की भी मिसाल है।

कश्मीर में केसर की खेती देखने गए
अनिल जायसवाल बताते हैं कि कुछ साल पहले वह अपने परिवार के साथ कश्मीर के प्रसिद्ध पम्पोर क्षेत्र में घूमने गए थे, जो केसर की खेती के लिए जाना जाता है। वहां के खूबसूरत केसर के खेतों को देखकर उन्होंने खुद भी इस महंगे मसाले की खेती करने की प्रेरणा ली। हालांकि, इंदौर का मौसम और कश्मीर की जलवायु में काफी अंतर है, इसलिए यह चुनौतीपूर्ण कार्य था। इसके बावजूद जायसवाल ने अपने घर के एक कमरे में इस काम को संभव करने का संकल्प लिया और एयरोपॉनिक्स तकनीक के माध्यम से उन्होंने इसे साकार किया।

यह तकनीक उपयोग में लाए
एयरोपॉनिक्स पद्धति एक ऐसी तकनीक है जिसमें पौधे मिट्टी के बिना उगाए जाते हैं और उनकी जड़ों को एक नियंत्रित वातावरण में पोषक तत्वों के धुंध से सीधा पोषण मिलता है। इस तकनीक की मदद से जायसवाल ने अपने घर के कमरे में तापमान, आर्द्रता, प्रकाश और कार्बन डाइऑक्साइड का नियंत्रण तैयार किया ताकि वहां केसर के पौधों को कश्मीर जैसी उपयुक्त जलवायु मिल सके। उन्होंने 320 वर्ग फुट के कमरे में एयरोपॉनिक्स तकनीक का एक बुनियादी ढांचा तैयार किया, जिसमें लगभग 6.50 लाख रुपये का खर्च आया।

पांच लाख रुपए किलो केसर का मूल्य
केसर उगाने के लिए जायसवाल ने कश्मीर के पम्पोर से केसर के एक टन बीज (बल्ब) मंगाए और उन्हें नियंत्रित वातावरण में सितंबर के पहले हफ्ते में स्थापित किया। कुछ ही हफ्तों में, अक्टूबर के अंत तक इन बल्बों पर फूल खिलने लगे और पूरे कमरे में केसर के बैंगनी फूलों की सुंदरता बिखरने लगी। जायसवाल को उम्मीद है कि इस सीजन में उन्हें 1.5 से 2 किलोग्राम केसर प्राप्त हो सकता है। चूंकि उनकी उगाई गई केसर पूरी तरह जैविक है, इसलिए उन्हें विश्वास है कि घरेलू बाजार में इसका मूल्य लगभग 5 लाख रुपये प्रति किलोग्राम होगा, जबकि अंतरराष्ट्रीय बाजार में यह कीमत 8.5 लाख रुपये तक जा सकती है।

पौधों को सुनाते हैं मंत्र
इस काम में जायसवाल का पूरा परिवार उनका साथ देता है। उनकी पत्नी कल्पना और परिवार के अन्य सदस्य केसर के पौधों की देखभाल करते हैं और साथ ही उन्हें विशेष संगीत भी सुनाते हैं। कल्पना का मानना है कि पेड़-पौधों में भी जीवन होता है और संगीत सुनाने से पौधों को बंद कमरे में भी ऐसा महसूस होता है जैसे वे प्राकृतिक वातावरण में हैं। वे पौधों को गायत्री मंत्र और पक्षियों की चहचहाहट वाला संगीत सुनाते हैं ताकि उनकी वृद्धि पर सकारात्मक प्रभाव पड़े।

सौर ऊर्जा का उपयोग भी संभव
भारत में केसर की बहुत अधिक मांग है, लेकिन उत्पादन सीमित होने के कारण बड़ी मात्रा में केसर का आयात करना पड़ता है। इस स्थिति को देखते हुए देश में केसर की खेती का यह तरीका बेहद महत्वपूर्ण है। एयरोपॉनिक्स पद्धति की कृषि के विशेषज्ञ प्रवीण शर्मा का कहना है कि इस तकनीक से केसर की खेती का विस्तार देश के अन्य हिस्सों में भी किया जा सकता है, लेकिन यह भी आवश्यक है कि इस पद्धति को सस्टेनेबल बनाने के लिए लागत कम से कम रखी जाए। एयरोपॉनिक्स पद्धति से खेती में बिजली की खपत बहुत अधिक होती है, इसलिए सौर ऊर्जा का उपयोग करके बिजली बिल में कटौती की जा सकती है।

विदेश से केसर बुलाना कम होगा
जायसवाल का यह प्रयास भारतीय कृषि में एक नई दिशा की ओर इशारा करता है। उनका मानना है कि यदि इस पद्धति को और विकसित किया जाए और अन्य किसान भी इसे अपनाएं, तो न केवल देश में केसर की उत्पादन क्षमता बढ़ाई जा सकती है, बल्कि आयात पर निर्भरता भी कम की जा सकती है। इसके अलावा, इससे किसानों की आय में भी वृद्धि हो सकती है, क्योंकि केसर का मूल्य बाजार में काफी ऊंचा होता है।

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