Blog

भांग की खेती वैध कराने हाईकोर्ट में लगाई याचिका, कहा- ये गोल्डन प्लांट, जानें जज ने क्या कहा?

बिगुल
बिलासपुर हाईकोर्ट (CG High Court) ने छत्तीसगढ़ में भांग (bhang cultivation) की व्यावसायिक खेती को वैध करने की मांग पर दायर जनहित याचिका (PIL) को खारिज कर दिया है। याचिकाकर्ता एस. ए. काले द्वारा दायर इस याचिका में भांग को ‘गोल्डन प्लांट’ बताते हुए इसके आर्थिक, सामाजिक और पर्यावरणीय लाभों को गिनाते हुए नीति निर्माण की मांग की गई थी। लेकिन, हाईकोर्ट की डिवीजन बेंच, जिसमें चीफ जस्टिस रमेश सिन्हा और जस्टिस बीडी गुरु शामिल थे, ने स्पष्ट कर दिया कि यह नीतिगत मामला है और कोर्ट इसमें हस्तक्षेप नहीं कर सकता।

कोर्ट ने कहा- व्यक्तिगत हितों को जनहित बताकर दायर की गई याचिका
कोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि जनहित याचिका (public interest litigation) तभी स्वीकार की जाती है जब वह वाकई में समाज के किसी व्यापक हित को दर्शाती हो, न कि व्यक्तिगत स्वार्थ को जनहित की आड़ में लाया गया हो। कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि याचिकाकर्ता द्वारा नीति बनाने की मांग करना एक ऐसा विषय है, जो पूरी तरह राज्य सरकार की विधायी और कार्यकारी शक्ति के दायरे में आता है।

NDPS Act के तहत भांग की खेती सामान्य रूप से प्रतिबंधित
हाईकोर्ट (CG High Court) ने अपने फैसले में नारकोटिक्स और साइकोट्रोपिक पदार्थ अधिनियम 1985 (NDPS Act 1985) का हवाला देते हुए कहा कि भारत में भांग की खेती केवल सीमित और अनुमत उद्देश्यों (जैसे चिकित्सा, वैज्ञानिक, औद्योगिक या बागवानी उपयोग) के लिए ही की जा सकती है, और वह भी तभी जब सरकार से स्पष्ट अनुमति प्राप्त हो। इस तरह की खेती का निर्णय लेना पूरी तरह सरकार की नीतिगत योजना पर आधारित होता है, न कि न्यायालय के आदेश पर।

सुरक्षा राशि जब्त, याचिका खारिज
हाईकोर्ट ने यह भी आदेश दिया कि याचिकाकर्ता द्वारा जनहित के नाम पर न्यायिक व्यवस्था का दुरुपयोग किया गया है, अतः उसकी जमा की गई सुरक्षा राशि (security deposit) जब्त की जाए। कोर्ट ने यह भी दोहराया कि संविधान के अनुच्छेद 226 (Article 226) के तहत दायर यह याचिका जनहित के मानकों को पूरा नहीं करती, इसलिए इसे सुनवाई योग्य नहीं माना जा सकता।

नीति निर्धारण न्यायालय का काम नहीं
इस फैसले के माध्यम से हाईकोर्ट (CG High Court) ने यह भी स्पष्ट संकेत दिया कि न्यायपालिका का काम नीतियां बनाना नहीं है (policy making is executive’s role), बल्कि विधायी और कार्यकारी इकाइयों द्वारा बनाए गए नियमों की वैधानिकता की समीक्षा करना है। विशेष रूप से मादक पदार्थों (narcotic substances) जैसे संवेदनशील मामलों में अदालत सीधे हस्तक्षेप नहीं कर सकती।

यह फैसला आने वाले समय में उन याचिकाओं के लिए एक मार्गदर्शक साबित हो सकता है, जो जनहित की आड़ में व्यक्तिगत उद्देश्य और सरकारी नीतियों को प्रभावित करने के लिए दायर की जाती हैं। छत्तीसगढ़ में भांग की खेती को लेकर अब किसी भी नीति का निर्माण राज्य सरकार के स्तर पर ही होगा, और उसमें अदालत की कोई सीधी भूमिका नहीं होगी।

Show More

The Bigul

हमारा आग्रह : एक निष्पक्ष, स्वतंत्र, साहसी और सवाल पूछती पत्रकारिता के लिए हम आपके सहयोग के हकदार हैं. कृपया हमारी आर्थिक मदद करें. आपका सहयोग 'द बिगुल' के लिए संजीवनी साबित होगा.

Related Articles

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button