कांग्रेस : कुमारी सैलजा के छत्तीसगढ़ प्रभारी बनने की अटकलें, सचिन पायलट पर फूटा लोकसभा हार का ठीकरा, टीम-बैज भी फलॉप

बिगुल
रायपुर. हाल में आए लोकसभा चुनाव के नतीजों ने कांग्रेस को सुलगाकर रख दिया. पार्टी 11 में से 10 लोकसभा सीट ही जीत सकी जबकि ज्योत्स्ना चरणदास महंत ने कोरबा सीट पुन: जीतकर कांग्रेस की लाज बचा ली. पहले विधानसभा और अब लोकसभा चुनाव में पार्टी की तीखी हार के बाद असंतोष उभर आया है. कल एक धरना प्रदर्शन में भी भूपेश बघेल मुर्दाबाद के नारे लगे हैं.
इसके पहले राज्य में दो तीन विवाद उभरकर सामने आए जिसमें पूर्व मुख्यमंत्री भूपेश बघेल के खिलाफ पार्टी के अंदर असंतोष उभरकर आया है. हालांकि इसे सत्ता की एंटीइनकमबेंसी ही कहा जा रहा है लेकिन पांच साल तक मुख्यमंत्री रहने के कारण बघेल असंतुष्टों के निशाने पर हैं. भूपेश बघेल के खासमखास विनोद वर्मा और प्रदीप शर्मा के खिलाफ भी असंतोष उभर रहा है. वर्मा पर आर्थिक भ्रष्टाचार करने के आरोप लगे हैं और उनकी शिकायत आलाकमान तक की गई है.
अब तक समीक्षा बैठक नही
लोकसभा में हार के बाद एक बार फिर कांग्रेस के भीतर समीक्षा की मांग उठने लगी है, लेकिन पार्टी अब तक समीक्षा बैठक नहीं बुला सकी. आखिर कांग्रेस हार के बावजूद क्यों समीक्षा का साहस नही जुटा पा रही है। क्यों पार्टी में लगातार उठ रही समीक्षा की मांग? क्या टिकट वितरण में गड़बड़ी से हारी कांग्रेस? क्या अति आत्मविश्वास की वजह से हारी कांग्रेस? ये वो सवाल हैं, जिनके जवाब खुद कांग्रेसी भी मांग रहे हैं। लेकिन अब तक उन्हें इनका जवाब नहीं मिल पाया है। क्योंकि छत्तीसगढ़ कांग्रेस ने अब तक लोकसभा चुनाव की हार की समीक्षा नहीं की।
हार गए धुरंधर, टीम बदलने की मांग
वो भी तब जब पार्टी ने पूर्व मुख्यमंत्री भूपेश बघेल से लेकर ताम्रध्वज साहू, कवासी लखमा और शिव डहरिया को भी लोकसभा के रण में उतार दिया. कांग्रेस के सभी दिग्गज चुनाव हार गए। महज एक सीट कोरबा ही जीत पाई। ऐसे में कांग्रेस के भीतर अब समीक्षा की मांग उठ रही है। पूर्व मंत्री धनेंद्र साहू और शिव डहरिया के बाद अब पूर्व मंत्री ताम्रध्वज साहू ने लोकसभा चुनाव में हुए हार की समीक्षा की मांग की है। कांग्रेस नेताओं की मांग पर कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष दीपक बैज ने भी जल्द समीक्षा होने की बात कही है। बैज पर पूरी टीम को बदलकर युवा चेहरों को मौका देने की मांग की जा रही है.
राज्य प्रभारी सचिन पायलट पर हार का ठीकरा
मात्र छह महीने पहले राज्य के प्रभारी बनाए गए कांग्रेस के राष्ट्रीय महासचिव सचिन पायलट पर भी पार्टी कार्यकर्ता और नेता गुस्सा उतार रहे हैं. उनका कहना है कि पायलट ने इस तरह काम किया मानो उन्हें छत्तीसगढ़ से कोई लेना देना ही नही था. वे मात्र दो या तीन दौरा ही कर सके. हालांकि टिकट वितरण में उन्होंने अपने आपको दरकिनार करके ही रखा और मात्र भूपेश बघेल की ही चली लेकिन पूरे चुनाव में जिस तरह राधिका खेडा—सुशील आनंद शुक्ला विवाद चला, जिस तरह राष्ट्रीय अध्यक्ष की पत्रकार वार्ता अचानक रदद हुई, जिस तरह पूरे चुनाव में उम्मीदवार आर्थिक तंगी से जूझते रहे जोकि चुनाव हारने का प्रमुख कारण बना, इन सबके चलते सचिन पायलट की नेतृत्व क्षमता पर सवाल खड़े हो रहे हैं.
लौट सकती हैं सैलजा
कांग्रेसियों का कहना है कि इससे अच्छा तो कुमारी सैलजा ने विधानसभा चुनाव में प्रबंधन संभाल लिया था. यदि पार्टी उन्हें ही राज्य का प्रभारी बने रहने देती तो आज परिणाम कुछ और होता. दूसरी तरफ माना जा रहा है कि कुमारी सैलजा लोकसभा चुनाव की तैयारियों में व्यस्त थी इसलिए पायलट को प्रभारी बनाया गया. अब जबकि सैलजा ने लोकसभा चुनाव जीत लिया है, ऐसे में उन्हें फिर से छत्तीसगढ़ का प्रभारी बनाया जा सकता है क्योंकि सचिन पायलट आलाकमान के सामने अनिच्छा जता चुके हैं.