छत्तीसघाट

शब्द श्रद्धांजलि : प्रधानमंत्री मोदी के राजनीतिक गुरू थे बलि दादा, नक्सलवाद के खिलाफ मजबूत दीवार थे बलिरामजी, वरिष्ठ पत्रकार डॉ.अनिल द्विवेदी का लेख

भारतीय राजनीति में छत्तीसगढ़ के जिन नेताओं ने अपनी अमर उपस्थिति दर्ज कराई है, स्वर्गीय बलीराम कश्यप उनमें से एक हैं। छत्तीसगढ़ की माटी के बिजहौं। आदिवासी हितों के सरपरस्त। बस्तर की प्रकृति और संस्कृति के अटल संरक्षक। उनके समर्थक उन्हें प्यार से दादा और बस्तर.टाइगर कहा करते थे। विधाता ने दुनिया में चुनिंदा नेताओं को ही यह संयोग दिया होगा कि उनका जन्म और मृत्यु का दिन एक ही हो, दादा उन्हीं में से एक हैं।

मृत्यु ने जिन्हें हमसे छीन लिया, लेकिन जिनकी कीर्तिगाथा काल के भाल पर अमिट अक्षरों में अंकित रहेगी, स्व.बलिराम कश्यप उनमें से एक हैं। विद्वता के साथ विनय, शासन के साथ सौजन्य, वज्र के समान कठोर किंतु कुसुम के समान मृदुल, उनका जीवन भावी संतति के प्रेरणादायी रहेगा। पद पाकर भी उन्हें मद नही हुआ। निस्पृहता का आदर्श उनके जीवन में हमने चरितार्थ होते देखा। बस्तर के पूर्व सांसद और विधायक रहे स्वर्गीय बलिराम कश्यप की राजनीतिक स्वीकार्यता कितनी थी, इसका अहसास प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने कुछ दिनों पहले बस्तर की ही धरती पर दिया। जगदलपुर के लालबाग मैदान में आयोजित एक परिवर्तन रैली को संबोधित करते हुए उन्होंने कहा कि स्वर्गीय बलिराम कश्यप मेरे राजनीतिक गुरू थे। उन्होंने कहा कि मैं बस्तर में संगठन का काम करता था। मैं हर इलाके में जाता था। बहुत समय मैंने यहां बिताया है। पूरे बस्तर को समझना, आदिवासी समाज को समझना और उनकी समस्याओं को समझना। इन सबके लिए बलिराम कश्यप जी एक तरह से मेरे गुरु की तरह काम करते थे। उन्होंने दादा की याद में वादा कर डाला कि उनसे जो कुछ सीखा है, उसे बस्तर का विकास करके लौटाउंगा।

दादा के पांव बस्तर की धरती पर दृढ़ता के साथ जमे थे लेकिन वे आसमान में उडते थे. दरअसल प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी जब भाजपा के संगठन महामंत्री बने और साल 1998 में छत्तीसगढ़ का प्रभारी बनाया गया तो उन्होंने कई दिन तक लगातार बस्तर का दौरा किया। बस्तर में रहकर नरेंद्र मोदी बलिराम कश्यप के साथ बस्तर के चप्पे चप्पे में जाकर चुनावी बैठक किया करते थे। इतना ही नहीं नरेंद्र मोदी उन दिनों बस्तर में बेहद ही अंदरूनी इलाकों में जाकर कार्यकर्ताओं से सीधा संवाद करते थे। उनके साथ हमेशा बलिराम कश्यप रहते थे। पीएम मोदी अक्सर बस्तर इलाके में चर्चित गोयल धर्मशाला में रुकते थे।

स्वर्गीय बलिराम कश्चप को बस्तर का टाइगर और दादा यूं ही नही कहा जाता था। वे पहले शिक्षक रहे लेकिन किस्मत उन्हें राजनीति में खींच लाई। उनके विचारों में दृढ़ता थी. उनके मूल में नैतिकता का संबल था, ईश्वर पर अटूट विश्वास था, कर्मफल में आस्था थी. स्व.बलिराम कश्यप का जन्म साल 1936 में हुआ था। वे 1972 से 1992 तक मध्य प्रदेश विधानसभा के सदस्य रहे। इस बीच में साल 1977 से 78 तक मध्य प्रदेश सरकार में राज्य मंत्री रहे। साल 1978 से 80 और साल साल 1998 से 1992 तक आदिवासी कल्याण मंत्री रहे। इसके बाद वही पहली बार एक साल के लिए लोकसभा में 1998 से 1999 तक सांसद रहे। फिर वह लगातार 1999 यानी 13वीं लोकसभा, साल 2004 14वीं लोकसभा और साल 2009 15वीं लोकसभा में लगातार सांसद बने रहे। यानी कि लगातार चार बार लोकसभा सदस्य के रूप में उन्होंने क्षेत्र का प्रतिनिधित्व किया।

बस्तर टाइगर कहे जाने वाले स्व. बलिराम कश्यप लगभग दो दशक तक भाजपा के एकमात्र नेता बने रहे। यह वह दौर था जब भाजपा उग रही थी और कोई चुनाव तक नही लड़ना चाहता था। तब दादा बलिरामजी पार्टी के संरक्षक रहे। उन्हें पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी बाजपेयी और पूर्व उप प्रधानमंत्री लाल कृष्ण आडवाणी, स्व. दिलीप सिंह जूदेव, स्व. लखीराम अग्रवाल बेहद सम्मान देते थेे। 1980 के दशक में जब नक्सली अपने पैर बस्तर में जमाना चाह रहे थे तब दादा उनके लिए सबसे बड़ी चुनौती बन गए थे। हिन्दुत्व और राष्ट्रवाद उनकी नसों में दौड़ता था तथा सत्य के लिए किसी से नही डरते थे। जनहित की बात होती थी तो अपने राजनीतिक विरोधियों के खिलाफ खुलकर बोलते थे इसीलिए उन्हें बाला साहेब ठाकरे भी कहा जाता था।

( केदार कश्यप, स्वर्गीय बलिराम कश्यप के सुपुत्र हैं और वर्तमान में राज्य सरकार में केबिनेट मंत्री हैं)

बस्तर के लाइफलाइन माने जाने वाली वनोपज संग्रहण के लिए दादा ने लम्बी लड़ाई लड़ी। खनिज और वन संपदा से भरपूर बस्तर की प्राकृतिक संपदा को बचाने के लिए दादा इन शक्तियों के खिलाफ डटकर खड़े रहे। हालांकि इसकी कीमत उनके परिवार ने चुकाई जब उनके बेटे तानसेन कश्यप की नक्सलियों ने हत्या कर दी थी। बलिराम कश्यप को लेकर यह कहा जाता है कि बस्तर क्षेत्र में इनका खासा दबदबा हमेशा से रहता था। साल 2003 और साल 2008 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी को बस्तर में मिली जीत में उनकी अहम भूमिका मानी जाती है। उनके नाम पर सरकार ने बस्तर में एक शासकीय चिकित्सा महाविद्यालय की शुरूआत भी की।

बताया जाता है कि साल 2003 में भारतीय जनता पार्टी को बस्तर क्षेत्र से 12 में से 9 सीटों मिली थी। वहीं, इसके बाद साल 2008 में भाजपा को 12 में से 11 सीटों पर बड़ी जीत मिली थी, जिसका श्रेय बलिराम कश्यप को जाता है। साल 2011 में बलिराम कश्यप का निधन हो गया मगर उनका त्याग, बलिदान और सेवा वाला जीवन नई पीढ़ी के लिए प्रेरणास्त्रोत बना रहेगा। उनके तीसरे बेटे केदार कश्यप दादा की राजनीतिक थाती को आगे बढ़ा रहे हैं। कश्यप फिलहाल राज्य सरकार में मंत्री हैं। हम जब भी उन्हें अपने बीच पाते हैं तो लगता है कि बस्तर.टाइगर अभी जिंदा हैं। हिमालय के समान दृढ़, समुद्र के समान गंभीर, आने वाली संतति बलि-दादा के जीवन से प्रेरणा प्राप्त करती रहेगी। विनम्र श्रद्धांजलि।

-लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं

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