मध्यप्रदेश

विश्लेषण : शिवराज से बहुत अलग है मोहन यादव का मिजाज, दिग्गज नेताओं के कामकाज पर दिखने लगा असर

बिगुल
करीब 17 साल शिवराज सिंह चौहान मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री रहे और पार्टी के कई दिग्गज नेताओं की उनसे नहीं पटी, लेकिन शिवराज ज्यादातर मौकों पर बैकफुट पर ही रहे, यानि जैसे भी हो सबको साध ही लेते थे। सालभर में लोगों ने डॉ. मोहन यादव के मिजाज को भी भांप लिया है। कहा जा रहा है कि इनका अंदाज कुछ अलग है। जब तक पटती है रिश्ते पूरी ईमानदारी से निभाते हैं और नहीं पटती है तो यह बताने में भी पीछे नहीं रहते हैं कि अब अपनी और पटने वाली नहीं है। ऐसा ही इन दिनों मध्य प्रदेश के कुछ दिग्गज नेताओं के साथ हो रहा है। उन्हें मुख्यमंत्री की वक्रदृष्टि का अहसास अच्छे से होने लगा है और इसका असर उनके कामकाज पर भी दिखने लगा है।

सोच-समझकर ही वीडी के खिलाफ मोर्चा खोला है भूपेंद्र सिंह ने

कभी मध्य प्रदेश की कैबिनेट में नंबर 2 की भूमिका में रहे भूपेंद्र सिंह ने जिस अंदाज में अपनी पार्टी के मुखिया वीडी शर्मा के खिलाफ मोर्चा खोला है उससे तो यही लग रहा है कि बात अब दूर तक जाएगी। भूपेंद्र ने यह अहसास कराने में भी कोई कसर बाकी नहीं रखी कि भले ही विद्यार्थी परिषद में वीडी ने खूब काम किया हो, लेकिन भाजपा में उनकी बहुत ज्यादा वरिष्ठता नहीं है। यह सब जानते हैं कि संगठन चुनाव का एक दौर पूरा हो चुका है और वीडी अब संगठन के मुखिया की भूमिका में ज्यादा दिन रहने वाले नहीं हैं। प्रदेश की सियासत में जो लोग उनसे खफा हैं वे भी इसी के चलते अब मुखर होने लगे हैं।

सदन में विजयवर्गीय का दबदबा

सत्ता के कामकाज में भले ही कैलाश विजयवर्गीय इन दिनों ज्यादा दखल नहीं दे रहे हों, लेकिन सदन में तो उनका दबदबा दिख ही जाता है। संसदीय कार्य मंत्री होने के साथ ही वे भाजपा विधायक दल के मुख्य सचेतक भी हैं। शीत सत्र में उन्हें सदन में सरकार को कटघरे में खड़ा करने में कोई कसर बाकी नहीं रखने वाले अपनी ही पार्टी के विधायकों को समझाने में खासी मशक्कत करना पड़ी। गनीमत यह है कि विधानसभा के इस सत्र में ऐसे नाराज विधायकों को मनाने में विजयवर्गीय कामयाब रहे। भाजपा में कहा जाता है कि विधायक किसी की बात मानें या न मानें विजयवर्गीय के आगे तो नतमस्तक हो ही जाते हैं।

कई मायने हैं प्रहलाद पटेल की बात के

उज्जैन की सड़कों के मुद्दे पर कैबिनेट की बैठक में तीखे तेवर दिखाने के बाद वरिष्ठ मंत्री प्रहलाद पटेल ने जो कुछ कहा उसका तो सार यही निकल रहा है कि जरूरी नहीं कि कैबिनेट में हर मंत्री हां में हां मिलाता ही नजर आए। बातों ही बातों में पटेल ने यह इशारा भी कर दिया कि वे यस मैन मंत्री नहीं हैं और जिस भी विषय पर उचित समझते हैं, वहां कैबिनेट में भी दमदारी से अपनी बातें रखते हैं। एक वरिष्ठ मंत्री की यह साफगोई इस बात की ओर भी इशारा करती है कि भले ही मुख्यमंत्री, मुख्यमंत्री हैं, लेकिन कैबिनेट में तो मंत्री दमदारी से अपनी बात रख ही सकते हैं।

उंगली तो राजपूत पर भी उठ गई

ट्रांसपोर्ट विभाग में सिपाही की नौकरी करते-करते करोड़पति बन गए सौरभ शर्मा के यहां लोकायुक्त के छापे और इनकम टैक्स और ईडी की इंट्री के बाद लंबे समय तक परिवहन मंत्री रहे गोविंद सिंह राजपूत पर भी उंगली उठ गई है। अंदरखाने से खबर यह आ रही है कि राजपूत के पहले कमलनाथ और बाद में शिवराज मंत्रिमंडल में परिवहन मंत्री रहते ही सौरभ ने परिवहन महकमे में पांव पसारे थे। इस दौर में बैरियर और आरटीओ कार्यालयों से पैसा उगाने और उसे ठिकाने लगाने का काम सौरभ के ही जिम्मे था। कहने वाले तो यह कहने से भी नहीं चूक रहे हैं कि विभाग के अच्छे-अच्छे अफसर बाहर खड़े रह जाते थे और सौरभ बेधड़क मंत्रीजी के कमरे में एंट्री कर लेता था।

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