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राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का वार्षिक प्रतिवेदन : सिर्फ 50 पन्ने हैं पढ़िए, आँखें खुल जायेंगी..न्यायपरक विश्लेषण

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ एक उग्रवादी संगठन है। संघ, देश भर में नफरत फैलाने का कार्य करता है। संघ एक प्रतिक्रियावादी संगठन है। संघ में सब कुछ अतिगोपनीय रहता है। यह एक रहस्यवादी संगठन है। आरोपों की सूची महाभारत के शिशुपाल की तरह सिर्फ निन्यान्वे ही नहीं सौ से ऊपर भी जा सकती है, जा रही है। ऐसे सभी अतिबुद्धिजीवियों से आग्रह है कि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की सर्वोच्च इकाई प्रतिनिधि सभा में सरकार्यवाह श्री दत्तात्रेय होसबाले के प्रतिवेदन को पढ़ने का समय निकालें। और सिर्फ पढ़ें ही नहीं ,प्रतिवेदन के एक एक तथ्य को वह जमीन पर जाकर सत्यापित भी कर लें।

संघ, स्वयं सुदर्शन चक्र चलाकर किसी का मान मर्दन नहीं करेगा, कारण विख्यात चिंतक स्व. श्री माधव गोविन्द वैद्य के अनुसार संघ का संगठन संपूर्ण समाज का संगठन( of the Society ) है, समाज के अंदर (within the society ) कोई संगठन नहीं है। अत: उसके लिए उससे असहमत, उसके विरोधी भी उसी के है, यह संघ की मान्यता है।

पर समाज के शोधार्थियों को समाज वैज्ञानिकों को, राजनेताओं को समाज जीवन से जुड़े प्रत्येक व्यक्ति को यह प्रतिवेदन पढ़ना चाहिए। समाज से पोषित समाज के सहयोग से संचालित राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ अपने दैनंदिन कार्य का वर्ष में जिस प्रकार ब्यौरा देता है, वह कोई सरकारी संगठन भी नहीं देता होगा। यह मैं पूरी गंभीरता से, प्रामाणिकता से कह रहा हूँ ।99 वर्षों से राष्ट्र साधना में रत राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का यह वैशिष्ट्य ही है कि वह बिना किसी अतिरिक्त प्रचार-प्रसार एवं आडम्बर से दूर रहकर न केवल अपने स्वयंसेवकों को अपितु संपूर्ण समाज को, देश को अपना वृत्त देने का साहस रखता है जो उसकी शुचिता का, प्रामाणिकता का एक प्रमाण है। कुल 50 पृष्ठ है। 31 हिन्दी में, है 19 अंग्रेजी में। दोनों में तथ्य एक ही है।

प्रतिवेदन का प्रारंभ ‘रामो विग्रहवान् “धर्म:रामलला के चित्र से है। राम, भारत का दर्शन है। राम, भारत का चरित्र है। राम, भारत का ही नहीं अखिल विश्व का एक धर्म है। अपने प्रतिवेदन में संघ अपने कार्य स्थिति, संघ के सरसंघचालक एवं सरकार्यवाह के वर्ष भर के प्रयास की जानकारी देता है। तुलना का कोई प्रश्न नहीं है, हास्यास्पद होगा, पर आज मानसिक रूप से दीवालिया हो चुके उन अति विद्वानों (?) से यह प्रश्न पूछा जाना चाहिए कि क्या हिन्दू धर्म में निहित ‘शक्ति “का विरोध करने वाले राहुलों और सनातन को डेंगू कहने वाले स्टालिनों में यह साहस है कि वह देश को बताएं कि वह 365 दिन कहाँ कहाँ रहे, किस-किस से मिले। संघ अपने प्रतिवेदन मेअपने संगठनात्मक पर विस्तार की भी क्षेत्रवार जानकारी देता है। वहीं समाज के प्रबोधन के लिए जागरण के कार्यों का भी वृत्त देता है। संघ अपने कार्यकर्ताओं के विकास एवं प्रशिक्षण की भी तिथिवार जानकारी देता है। जाकर देखना चाहिए उन मूर्खों को जो इन शिविरों को आंतक के शिविर बताते हैं। संघ अपने प्रतिवेदन में ग्राम्य विकास, कुटुम्ब प्रबोधन, पर्यावरण सुधार सामाजिक समरसता सहित जीवन के प्रत्येक क्षेत्र को स्पर्श करने वाली अपनी रचनात्मक गतिविधियों की विस्तार से जानकारी देता है।

मैं राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के विचार से प्रेरित विविध संगठनों की बात नहीं कर रहा हूँ ।सिर्फ संघ के सेवा विभाग के माध्यम से देशभर में 1,22,890 सेवा कार्य आज चल रहे हैं। रेखांकित करें यह आंकड़ा लाभार्थियों का नहीं है सेवा कार्य का है। और एक आंकड़ा देखिए स्वास्थ्य प्रकल्प के माध्यम से 87,16,000 अन्नदान के माध्यम से 27,35,000 और सामाजिक सेवा कार्यों के माध्यम से वर्ष भर में 21,45,000 लाभान्वित हुए। केन्द्र एवं राज्य सरकार सेवा कार्य के लिए अरबों बर्बाद कर क्या परिणाम लाती है, उन्हें आँखों में तेल डालकर इन सेवा कार्यों की प्रेरणा एवं तंत्र को समझना चाहिए।
यहीं नहीं, प्रतिवेदन का एक तथ्य देकर ही मैं अपनी बात पूरी करूंगा, ताकि ध्यान में आए, संघ का कृतिरुप दर्शन क्या है। बेंगलुरु में एक बड़ी रिहायशी सोसायटी है। 2300 फ्लैट है। संघ कार्यकर्ताओं ने 7000 नलों में ऐरिएटर लगाकर 12.60 लाख लीटर पानी की बचत की।
यह सिर्फ एक बानगी है। समाज के सहयोग से , समाज के लिए, समाज का एक संगठन किस प्रकार ‘तेरा वैभव अमर रहे मां हम दिन चार रहें ना रहें के भाव से न केवल काम करता है, समाज को ही संपूर्ण श्रेय देकर अपना हिसाब देता है, यह एक मात्र उदाहरण है।
है कोई दूसरा तो बताइए।

( लेखक स्वदेश समाचार-पत्र के समूह संपादक हैं )

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