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होली की अनूठी परंपरा : गौ माता के साथ गुबरेल कीट, चमगादड़ और पलास के पेड़ बने अतिथि, जानिए इसके पीछे की खास वजह

बिगुल
गरियाबंद. होली की परंपरा के साथ ही प्रकृति प्रेम को बढ़ावा देने कांडसर के गौ शाला में पिछले 18 वर्षों से अनूठे तरीके से होली मनाई जा रही है. होली में इस बार गौ माता के साथ गुबरेल कीट, चमगादड़ और पलास के पेड़ को अतिथि बनाया गया है. आज ब्रम्हमुहूर्त से हवन शुरू हुआ है. पूर्णिमा के दिन होगी पूर्णाहुति होगी. फिर उसी भभूति का तिलक लगाकर होली खेली जाएगी.

बता दें कि दो दिन पहले क्षेत्र भ्रमण के लिए निकाली गई गौ माता की वापसी हुई. 23 जनवरी को ब्रम्ह मुहूर्त में होने वाले यज्ञ के शुभारंभ के पूर्व गौमाता समेत इस बार बनाए गए अतिथि पलास वृक्ष, गुबरैल कीट और चमगादड़ के स्वागत के लिए लोग आश्रम से 3 किमी दूर पर काडसर बस्ती में लोग जुटे. स्वागत सत्कार के बाद आगे-आगे सैकड़ों की संख्या में माताएं कलश यात्रा लेकर चल रही थीं. सफेद कपड़े का कालीन बिछा-बिछाकर यज्ञ स्थल तक अतिथियों को बाजे-गाजे और जगह-जगह पूजन स्वागत कर गौ शाला में बने सभास्थल ले जाया गया. देर शाम सभा का आयोजन शुरू हुआ.

हवन की राख से खेली जाएगी होली

इस आयोजन में क्षेत्र में मौजूद बाबा उदय नाथ के अनुयाई, जिनकी संख्या 7 हजार है. वे सभी और उसके अलावा प्रदेश के विभिन्न स्थानों से आए हिंदू संगठन, संघ और गौसेवक भी शामिल हुए. 23 मार्च से शुरू यज्ञ तीन दिन तक चलेगा. 25 मार्च को ब्रम्ह मुहूर्त में हवन की पूर्णाहुति दी जाएगी. फिर इसी आहुति की राख से तिलक लगाकर शांति पूर्ण ढंग से गौ शाला परिसर में होली खेली जाएगी. तीन दिन तक विशेष भंडारे का आयोजन होगा. भंडारे में लगने वाले अनाज और सामग्री की व्यवस्था अनुयायियों से मिले भेंट और गौशाला प्रबंधन समिति करती है.

प्रकृति के प्रति कृतज्ञता व्यक्त कराना उद्देश्य

2005 में इस अनूठे होली आयोजन के उद्देश्य के बारे में बाबा उदय नाथ बताते हैं कि किसी न किसी बहाने हमे प्रकृति के प्रति आभार व्यक्त करना चाहिए।होली हमारी सनातन परंपरा है,लेकिन समय के साथ इसका स्वरूप लोग बदलने लगे है।हुडदंग,मास मदिरा सेवन के चलते निर्मित दूषित वातावरण से अपने अनुयाई को दूर रखने के साथ ही प्रकृति को सहजने वाले जीव जंतु के महत्ता को समझाने व उनके प्रति आस्था बनाएं रखने इसकी शुरुवात किया,और आज हजारों लोग इससे जुड़ भी रहे हैं।वातावरण में मौजूद समस्त मित्र जीव जंतु पेड़ पौधे को बारी बारी से प्रति वर्ष के आयोजन में अतिथि बनाया जाता है।गौ माता सदेव मुख्य अतिथि की भूमिका में होती हैं.

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