बड़ी खबर : हाईकोर्ट ने आरक्षण के तहत नौकरियों में अतिरिक्त अंक देने का प्रस्ताव खारिज किया, कहा कि सामाजिक-आर्थिक स्थिति अच्छी है तो एक्स्ट्रा मार्क्स देने का कोई औचित्य नहीं, जानिए पूरा फैसला
बिगुल
पंजाब एवं हरियाणा उच्च न्यायालय ने राज्य सरकार की नौकरियों में अतिरिक्त अंक देने के लिए हरियाणा सरकार द्वारा शुरू किए गए सामाजिक-आर्थिक मानदंड को “असंवैधानिक” घोषित किया है।
न्यायमूर्ति संजीव प्रकाश शर्मा और न्यायमूर्ति सुदीप्ति शर्मा ने मानदंड को यह कहते हुए खारिज कर दिया कि यह भारत के संविधान के अनुच्छेद 14, 15 और 16 का उल्लंघन है।
न्यायालय 2023 में दायर याचिकाओं के एक समूह की सुनवाई कर रहा था, जिसमें राज्य सरकार की नौकरियों में कुछ वर्गों के उम्मीदवारों को अतिरिक्त अंक देने के लिए सामाजिक-आर्थिक मानदंड को चुनौती दी गई थी।
हरियाणा ग्रुप डी कर्मचारी (भर्ती और सेवा की शर्तें) अधिनियम, 2018 के अनुसार, 5%अतिरिक्त अंक देने के लिए “सामाजिक-आर्थिक” मानदंड के तहत निम्नलिखित वर्ग के लोगों पर मोटे तौर पर विचार किया गया था
यदि उसके परिवार का कोई भी सदस्य सरकारी कर्मचारी नहीं है और परिवार की सभी स्रोतों से सकल वार्षिक आय 1.80 लाख रुपये से कम है तो ऐसे युवाओं को 5% अंक अतिरिक्त जोड़े जाएंगे।
इसी तरह विधवा या पहली या दूसरी संतान और उसके पिता की मृत्यु 45 वर्ष की आयु प्राप्त करने से पहले हो गई हो तो हरियाणा की “विमुक्त जनजाति” या खानाबदोश जनजाति से संबंधित है तो उसे भी यह लाभ देने का प्रस्ताव था।
अंत में, आवेदक को हरियाणा सरकार के अधीन किसी भी विभाग, बोर्ड निगम, कंपनी, सांविधिक निकाय, आयोग आदि में समान या उच्चतर पद पर छह महीने से अधिक के अनुभव के प्रत्येक वर्ष या उसके भाग के लिए आधा प्रतिशत वेटेज दिया जाना था।
याचिकाकर्ताओं में से एक का प्रतिनिधित्व करने वाले अधिवक्ता सार्थक गुप्ता ने बताया कि सामाजिक रूप से पिछड़े वर्गों और आर्थिक रूप से कमजोर वर्गों के लिए आरक्षण पहले से ही राज्य द्वारा दिया जा चुका है। “सामाजिक रूप से पिछड़े/वंचित वर्ग के लोगों” को अतिरिक्त अंक प्रदान करना, विशेष उपचार/दोहरा आरक्षण है, जो संविधान के तहत अस्वीकार्य है।