देश में लोकसभा चुनाव के लिए दो चरणों के लिए वोटिंग हो गई है, जबकि तीसरे चरण के लिए दो दिन बाद यानि 7 मई को मतदान होना है. हालांकि, इस चुनाव में NDA और I.N.D.I.A अलायंस के बीच कड़ा मुकाबला देखने को मिल रहा है, लेकिन कुछ दल अकेले ही चुनाव में ताल ठोंक रहे हैं. इन्हीं में से एक है मायावती की बसपा, जो अकेले ही लोकसभा चुनाव लड़ रही है.
दरअसल, बसपा सुप्रीमो मायावती ने अपने कोर वोटर दलितों के अलावा मुस्लिम वोटरों को साधने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ी है. बसपा अपने पुराने जनाधार को वापस पाने के लिए ऐड़ी चोटी का जोर लगा रही है. हालांकि, इसकी कम ही आशंका है कि मायावती की बसपा इन चुनाव में कोई बड़ा करिश्मा कर दिखाए, लेकिन ये बात साफ दिखाई देती है कि उनकी पार्टी कई लोकसभा सीटों के चुनावी नतीजों को प्रभावित कर सकता है. यूपी की कई सीटें ऐसी है, जहां बसपा ने बीजेपी और सपा-कांग्रेस गठबंधन की मुश्किलें बढ़ा रखी है.
वोटबैंक पर सबकी नजरें
उत्तर प्रदेश की 80 लोकसभा सीटें अगली सरकार बनाने का रास्ता साफ करेंगी. बीजेपी से लेकर सपा और बसपा से लेकर कांग्रेस तक हर किसी दल की अपने वोटबैंक पर नजर है. हालांकि, बीजेपी ने जहां क्षेत्रीयों दलों के साथ गठबंधन किया है तो 2017 विधानसभा चुनाव के बाद सपा ने एक बार फिर कांग्रेस के हाथ का सहारा लिया है, लेकिन इनमें सिर्फ मायावती ही एकलौती नेता हैं जिनकी पार्टी अकेले ही चुनाव में किस्मत आजमा रही है.
लोकसभा चुनाव में कितनी फीसदी मिले वोट
पिछले तीन लोकसभा चुनाव पर नजर डालें तो बसपा का वोटबैंक उनसे खिसकता गया है. साल 2009 के लोकसभा चुनाव में बसपा को 27 प्रतिशत वोट मिले थे तो 2014 के लोकसभा चुनाव में उनका वोट प्रतिशत 19.77 रह गया. वहीं, 2019 के चुनाव में बसपा को 19.43 प्रतिशत वोट मिल था. हालांकि, 2019 में बसपा 10 सीटें जीतने में कामयाब जरूर रही.
इन सीटों पर बसपा की नजर
2024 के लोकसभा चुनाव में बसपा पूरे दमखम के साथ चुनाव लड़ रही है. बसपा ने जौनपुर सीट से बाहुबली पूर्व सांसद धनंजय सिंह की पत्नी श्रीकला को टिकट दिया है. इसके अलावा नगीना सीट से सुरेंद्र पाल सिंह पर दांव चला है. इसके साथ ही बीजेपी ने अलीगढ़, फतेहपुर सीकरी, खीरी और उन्नाव लोकसभा सीटों पर ब्राह्मण प्रत्याशी उतारे हैं, बसपा की निगाहें उन सीटों पर है, जो भाजपा के लिए काफी महत्वपूर्ण है.
क्या है सपा और कांग्रेस की रणनीति
इस बीच सपा और कांग्रेस ने भी बसपा के कोर वोटर को साधने के लिए नई रणनीति बनाई है. बसपा दलित वोटरों को साधने के लिए बाबा साहेब भीमराव अंबेडकर और आरक्षण का सहारा ले रही है. जिन सीटों पर दलित वोटर निर्णायक भूमिका में है, वहां भी सपा-कांग्रेस गठबंधन मजबूती के साथ अपनी स्थिति दर्ज करा रहा है.