छत्तीसघाट

छत्तीस घाट : विधानसभा के नए ‘प्रिंसिपल, वरिष्ठ पत्रकार डॉ.अनिल द्विवेदी विधानसभा अध्यक्ष डॉ.रमन सिंह की कार्यशैली पर प्रकाश डाल रहे हैं!

छत्तीसगढ़ के लोकतंत्र का मंदिर है हमारी विधानसभा जिसके अध्यक्ष हैं डॉ.रमन सिंह. जैसे स्कूल में एक प्रिंसिपल होता है, मंदिर में पुजारी और परिवार में पिता, वैसे ही विधानसभा का अध्यक्ष. चारों पदवियां देहात्मबुदिध की प्रतीक हैं. गुजरे मानसून सत्र में डॉ. रमन सिंह ऐसे प्रिंसिपल के तौर पर देखे गए जिसने विधानसभा को पूरी तरह पारदर्शी और आमजन के प्रति जवाबदेह बनाए रखा. वे संसदीय परंपराओं का पालन, विधायकों के अधिकारों और गरिमा की रक्षा तथा पक्ष-विपक्ष में सामंजस्य बनाए रखने में सफल रहे. कांग्रेस के एक विधायक की इस टिप्पणी पर जमकर ठहाके लगे कि लोकसभा अध्यक्ष बिड़ला चाहें तो रमनसिंह से टयूशन ले सकते हैं!

सियासत में कुछ भी बेमकसद नहीं होता. यहां उपस्थिति, अनुपस्थिति, मौन हो या मुखरता, सबकी अपनी अहमियत होती है. एक जागृत लोकतंत्र में सवाल उठने लाजिमी हैं. कभी-कभी कुछ आरोप भी लग सकते हैं. कुछ गलतफहमियां भी पैदा हो सकती हैं, पर बदनीयती न हो तो उन पर आसानी से पार पाया जा सकता है. नेता प्रतिपक्ष डॉ.चरणदास महंत ने तो पहले ही सत्र में साफ कर दिया था कि रमनसिंह और मेरे रिश्ते कुछ अलग तरह के हैं. पांच दिन के सत्र में दोनों माननीयों ने अपनी सीमाओं-सम्मान का बखूबी ध्यान रखा. विधायक अजय चंद्राकर के तेवर से विपक्ष एक दो बार बौखलाकर कार्यवाही बहिष्कार भी किया, लेकिन रमनसिंह ने न्यायपरक संवाद करके मना लिया. अन्यथा एक मिनट की कार्यवाही लाखों रूपये खर्च हो जाते हैं तब समय कितना जाया होता!

खुशकलामियां यह कि 15 साल तक राज्य के मुख्यमंत्री रहे डॉ. रमन सिंह जब विधानसभा अध्यक्ष बनाए गए तो अधिकांश आमजनों ने इसे पार्टी का सही फैसला करार दिया था. सदन के अध्यक्ष से जिस व्यवहार, उदारता, धैर्यता, न्यायपरकता की उम्मीद की जाती है, रमनसिंह जी इस पर खरा उतरते हैं. पांच दिन के मानसून सत्र में उन्होंने सत्ता पक्ष और विपक्ष सभी को समान मौका दिया. शुरूआती तीन दिन जब लगा कि सत्ता पक्ष के नवांकुर मंत्रियों को अपने ही विधायक घेर रहे हैं तो डॉ. रमनसिंह ने सख्ती दिखाते हुए उच्छृखंल विधायकों को दबा दिया. इसके बाद भाजपा ने राहत की सांस ली. सरकार के मंत्रियों को भी रमन सिंह दिशा-निर्देश-चेतावनी देने से नही चूके. एक शिक्षक की भांति उन्होंने यहां तक समझाया कि ऐसा बोलिए और मंत्री ने वैसा ही रिपीट कर दिया.

विधानसभा अध्यक्ष के रूप में डॉ.रमन सिंह को संविधान ने जो शक्तियां प्रदान की हैं, उसी के दम पर वे सदन चलाते हैं. सदन को कैसे चलाना है, यह तो वे ही तय करेंगे. विपक्ष के तेवर को भी उन्होंने चालाकी के साथ ठण्डा किया. एक विधायक को यहां तक कह दिया कि आपको कोई बीमारी है क्या बार-बार टोकने की. आश्चर्य कि प्रति बैठक प्रश्नों का औसत 193 रहा जो छत्तीसगढ़ विधानसभा के इतिहास में सर्वाधिक है. 96 प्रतिशत प्रश्न आनलाइन लगाए गए. यह तथ्य दर्शाता है कि राज्य के विधायकों ने कलम-कागज से परे हटकर तकनीक आधारित काम पर फोकस किया है.

रमनसिंह ने सदन में अपने पास एक चैतन्यस्वरूप अलार्मिंग घण्टी हमेशा रखी. सदन में 90 विधायक हैं जिनमें 40 प्रतिशत से अधिक नए हैं. विधानसभा अध्यक्ष के तौर पर डॉ.रमन सिंह ने उन्हें खासा प्रोत्साहित किया, बोलने के अवसर दिए और कईयों का हौसला भी बढ़ाया. विधायक सुशांत शुक्ला जब पहली बार बोलने के लिए खड़े हुए तो वरिष्ठ विधायक उठकर जाने लगे. इस पर सिंह ने व्यवस्था दी कि नए सदस्य पहली बार बोल रहे हैं, कृपया कर उन्हें सुनें. एक और दृश्य देखिए. पहली बार चुनकर आई विपक्ष की एक महिला विधायक ने शिकायत की और बोलने के लिए ज्यादा समय मांगा तो रमनसिंह ने मुस्कुराते हुए यह कहकर हौंसला बढ़ाया कि आप चिंता मत करिए. पहले से बता देंगी तो समय तय कर देंगे. विधायक उमेश पटेल को उन्होंने टोका कि, ‘समय का ध्यान रखें…विपक्ष के लिए जो समय तय है आपने अकेले ही ले लिया! अगर एक-एक सदस्य इसी तरह बोलते रहे तो सदन चलाना मुश्किल हो जाएगा.’ मानूसन सत्र संसदीय कार्यमंत्री केदार कश्यप के लिए भी परीक्षा की घड़ी जैसा ही रहा. सरल-सौम्य मुस्कान के साथ उन्होंने विपक्ष की रणनीति को भोथरा किया और सरकार की लाज बचाई.

सदन में पहली बार चुनकर पहुंचे उपमुख्यमंत्री विजय शर्मा, मंत्री ओ पी चौधरी, विधायकों में सुशांत शुक्ला, विधायक भावना बोहरा, अनुज शर्मा, विधायक हर्षिता स्वामी बघेल और राघवेन्द्र सिंह की प्रभावी उपस्थिति को रमनसिंह ने अपने भाषण में सराहा और उनके उज्जवल भविष्य की कामना की. ऐसा एक क्षण भी प्रतीत नही हुआ कि सरकार के समर्थक विधायक होते हुए उन्होंने कभी सत्तापक्ष को बख्शा हो या विपक्ष को फंसाया हो. इसकी नजीर भी स्थापित हुई. सत्ता पक्ष से जुड़ा होने के बावजूद अपने ही मंत्रियों को समय-पालन करने की सीख देकर या सदस्यों को पूरी जानकारी के साथ जवाब देने का निर्देश देकर चाउर वाले बाबा ने संदेश दिया है कि उनके नियम सदन में सभी के लिए बराबर हैं. यही है कबीराना दर्शन.

डॉ रमन सिंह के लिए सबसे असमंजस की स्थिति तब बनी जब भाजपा के विधायक अजय चंद्राकर ने विधानसभा सचिवालय को एक मामले में घेर लिया। चंद्राकर ने शिकायत की कि उन्होंने जो सवाल लगाया था, उसमें दो संशोधन किए गए और उन्हें आज ही दिया गया। ऐसे में मैं बिना तैयारी के सवाल कैसे कर सकता हूं, मुझे इसकी तैयारी करनी पड़ेगी। चंद्राकर ने आग्रह किया कि इस सवाल को अगले विधानसभा सत्र के लिए टाल दिया जाए। इस पर रमन सिंह के सामने असमंजस की स्थिति खड़ी हो गई। वे चाहते थे सीधे निर्देश दे सकते थे कि अपना सवाल कीजिए लेकिन बड़ा दिल दिखाते हुए सवाल को अगले सत्र के लिए स्थगित कर दिय। यह दर्शाता है कि डॉक्टर रमन सिंह में असीम धैर्य और बड़प्पन है।

बहरहाल रमन सिंह ने अपने समापन भाषण में इंगित किया कि ‘सदन का सम्मान बनाए रखने के लिए हम सभी ने दलीय प्रतिबद्धता से हटकर सिर्फ जनहित को प्राथमिकता दी.’ अटलजी ने संसद में सही कहा था : न भीतो मरणादस्मि केवलं दूषितो यश: अर्थात मैं मृत्यु से नहीं डरता, डरता हूं तो बदनामी से, लोकापवाद से डरता हूं. रमन सिंह भी इसी पगडण्डी पर चल रहे हैं. कुल मिलाकर अन्य भदेष राज्यों की तरह छत्तीसगढ़ की विधानसभा ने खुद को सबले बढ़िया साबित किया है.

( लेखक दैनिक प्रखर समाचार और टीवी के स्थानीय संपादक हैं )

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