शिवलिंग के ऊपर जो पानी से भरी मटकी बांधी जाती है, उसका कया महत्व है …
The pot filled with water is tied on top of Shivalinga. What is its importance...
शिवलिंग को ऊपर जो पानी से भरी मटकी बांधी जाती है, उसे गलंतिका कहा जाता है। गलंतिका का शाब्दिक अर्थ है, जल पिलाने का करवा या बर्तन। इस मटकी में नीचे की ओर एक छोटा सा छेद होता है, जिसमें से एक-एक बूंद पानी शिवलिंग पर निरंतर गिरता रहता है। ये मटकी मिट्टी या किसी अन्य धातु की भी हो सकती है। इस बात का विशेष ध्यान रखा जाता है कि इस मटकी का पानी खत्म न हो।
शिवलिंग पर प्रतिदिन लोगों द्वारा जल चढ़ाया जाता है। इसके पीछे भी यही कारण है कि शिवजी के शरीरा का तापमान सामान्य रहे। गर्मी के दिनों तापमान अधिक रहता है, इसलिए इस समय गलंतिका बांधी जाती है, ताकि निरंतर रूप से शिवलिंग पर जल की धारा गिरती रहे।
बैसाख मास में लगभग हर मंदिर में शिवलिंग के ऊपर गलंतिका बांधी जाती है। इस परंपरा में ये बात ध्यान रखने वाली है तो गलंतिका में डाला जाने वाला जल पूरी तरह से शुद्ध हो। चूंकि ये जल शिवलिंग पर गिरता है, इसलिए इसका शुद्ध होना जरूरी है। अत: सफाई और शुद्धता का ध्यान रखना जरूरी है।
हिंदू धर्म ग्रंथों के अनुसार वैशाख मास में भीषण गर्मी पड़ती है। जिससे शरीर का तापमान बढ़ जाता है। वह कई बीमारियों को सामना करना पड़ता है। ऐसी ही मान्यता भगवान शिवजी से जुड़ी है। जब समुद्र मंथन में सबसे पहले कालकूट नामक भयंकर विष निकला था। तब पूरी सृष्टि में कोहराम मच गया था। तब भगवान शंकर ने उस विष को पीकर सृष्टि को बचाया था। मान्यताओं के अनुसार वैशाख मास में महादेव पर विष का असर होने लगता है। उनके शरीर का तापमान भी बढ़ने लगता है। उस तापमान को नियंत्रित करने के लिए शिवलिंग पर मटकी बांधी जाती है। जिसमें से बूंद-बूंद टपकता जल शंकर को ठंडक देता है।
वैशाख मास में सूरज पृथ्वी के सबसे निकट होता है। तब अधिक ताप से पृथ्वी में अत्यधिक गर्म हो जाती है। इसका असर प्राणी और पेड़-पौधों पर पड़ता है। वहीं कई तरह की मौसमजनिक बीमारी फैलने का डर रहता है। उससे बचने के लिए पानी पीना बेहद जरूरी है। शरीर में डिहाइड्रेशन की स्थिति रहने से बीमार होने का खतरा कम हो जाता है। वैशाख मास में शिवलिंग के ऊपर गलंतिका बांधना इस बात का संकेत देती है कि जब सूर्य का ताप अधिक हो.