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वित्त मंत्री ओ पी चौधरी ने भूपेश सरकार की योजनाओं की खोली पोल, बंद होंगी तो 5500 करोड़ की बचत होगी

बिगुल
रायपुर. पूर्व आईएएस ओपी चौधरी अब प्रदेश के नए वित्त मंत्री हैं। वित्त मंत्री बनने के बाद वो कई बार दोहरा चुके हैं कि पूर्व की कांग्रेस सरकार ने प्रदेश के वित्तीय हालात को चौपट कर दिया। वित्तीय व्यवस्था खस्ताहाला है। राजस्व के तमाम स्रोतों में जमकर भ्रष्टाचार किया गया। लिहाजा, नए रिफॉर्म करने होंगे। शॉर्ट, मिडिल और लॉंग टर्म के सुधार करने होंगे, ताकि राज्य के राजस्व प्राप्ति में सुधार हो सके।

सरकार और वित्त विभाग के सूत्रों की मानें तो प्रदेश के वित्तीय हालात को संभालने के लिए कई फैसले लिए जा सकते हैं। सबसे पहला उपाए, कांग्रेस सरकार की उन चंद योजनाओं को बंद करने की होगी, जिसको लेकर भाजपा शुरू से भ्रष्टाचार का आरोप लगाती रही है। इनके बंद होने से ही हजारों करोड़ रुपये सरकार बचा सकती है। बिजली बिल हाफ की योजना बीजेपी के मेनिफेस्टो में नहीं है। अगर इसे बंद किया गया तो सालाना 1 हजार करोड़ रुपये से ज्यादा की बचत सरकार को होगी। भूपेश बघेल सरकार की फ्लैगशिप गोधन न्याय योजना के तहत गोबर और गोमूत्र खरीदी को भी भाजपा भ्रष्टाचार का गढ़ बताती आई है। इसे बंद किया जा सकता है। इससे सालाना करीब 500 करोड़ रुपये बचेगा। सरकारी शराब दुकान भी इस रिफार्म्स का अहम केंद्र हो सकती है।

भाजपा आरोप लगाती रही है कि यहां 50 फीसदी शराब माफियाओं की बिकती आई है। सिर्फ इसी लीकेज को ठीक कर लिया गया तो सालाना 5500 करोड़ रुपये की व्यवस्था राज्य सरकार कर लेगी, क्योंकि खुद आबकारी विभाग का आंकड़ा है, शराब बिक्री से सालाना 5500 करोड़ की शराब हर साल बेची जाती है। रेत, मुरूम जैसे गौण खनिज भी राजस्व बढ़ाने का एक बड़ा जरिया है।

जानकार बताते हैं कि 90 फीसदी मुरुम खदान या रेत घाटों का टेंडर ही नहीं हुआ है। यानि ये सब बिना रॉयल्टी दिए, सिर्फ राजनीतिक संरक्षण में चल रहे हैं। सभी घाटों का टेंडर हुआ तो इसकी रॉयल्टी खजाने तक पहुंचने लगेगी और एक बड़ी रकम सरकारी खजाने तक पहुंच जाएगी।

इनके अलावा, डीएमएफ फंड का लीकेज भी अपने आप में रिफॉर्म्स का बड़ा स्रोत है। कोल लेवी से लेकर आरटीओ जैसे सेक्टर भी हैं, जहां जारी लीकेज को रोक लिया गया, तो भी भारी राजस्व अर्जित किया जा सकता है। चूंकि मौजूदा वित्त मंत्री आईएएस रहे हैं, लिहाजा प्रशासनिक खामी और व्यवस्थाओं की गहरी समझ उन्हें है। इस नाते अगर वो चाहे तो आसानी से राज्य की वित्तीय व्यवस्था को ठीक भी कर सकते हैं।

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