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G-20 : वरिष्ठ पत्रकार डॉ.अनिल द्विवेदी समझा रहे हैं कि जी-20 का आयोजन छत्तीसगढ़ के लिए बेहद फीका, अनुपलब्धिपूर्ण क्यों रहा ?

​डॉ. अनिल द्विवेदी

नवा रायपुर के निजी होटल में आयोजित जी—20 की फाइनेंस फ्रेमवर्क वर्किंग ग्रुप की अंतरराष्ट्रीय बैठक दो दिनों तक चलने के बाद खत्म हो गई. हमें गदगद गर्व हो रहा है. लेकिन आयोजन मुसु मुसुहाती दिलमलई लई रहा. बेहद फीका और अनुपलब्धिपूर्ण. हां हम यह आत्मसंतुष्टि पाल सकते हैं कि 65 देशों के मेहमानों ने छत्तीसगढ़ की धरती पर कदम रखकर हमें धन्य किया और यहां का जायका चखकर, गिफट लेकर उड़ गए. कटसी के नाते भी हम छत्तीसगढ़ियों को विदेशी मेहमानों का जय जोहार करने या उनसे औपचारिक परिचय या संवाद करने का मौका दिया ही नही गया.

इस आयोजन का अमृत भाजपा के हिस्से और विष कांग्रेस सरकार को आया है. साथ ही कई अनुत्तरित सवाल भी खड़े हुए हैं. मसलन नई दिल्ली में जी-20 का मुख्य सम्मेलन खत्म होने के बाद छत्तीसगढ़ में आयोजन की क्या जरूरत थी! क्या यह महज एक इवेंटभर था या 30 करोड़ का बजट खर्च करने की मजबूरीभर.

किसी इच्छा का पूरा नही होना, हारना नही होता. अफसोसजनक हालात हैं कि जिस राज्य में अंतरराष्ट्रीय बैठक हो रही हो, वहां के मुख्यमंत्री और राज्यपाल तक किनारे करके रखे गए. विधायक, सासंदों, मंत्रियों, भारत सरकार की केंद्रीय राज्यमंत्री, मुख्यमंत्री, राज्यपाल और मीडिया की क्या बिसात भला! जिस मीडिया को आमंत्रण तक ना भेजा गया हो, उसने बरसात में भींगते हुए आयोजन को लाइव किया. बेगानी शादी में अब्दुल्ला दीवाना इसे ही कहते हैं. छत्तीसगढ़ चीफ मिनिस्टर आफिस या गर्वनर हाउस के टिवटर हैंडल पर भी आयोजन से जुड़़ी तस्वीर तक साझा नही हुई. मुख्यमंत्री भूपेश बघेल के पर्सनल सोशल मीडिया एकाउंट में भी जी20 समारोह गायब ही दिखा.

ऐसा कैसे हो सकता है कि किसी घर में मेहमान आए हों और मेजबान को ही गायब कर दिया जाए पर जी—20 के आयोजन में हुआ. बहस की बुनियाद में यह सवाल खड़ा है कि राज्य की कांग्रेस सरकार पूरे मन से इस कार्यक्रम से ना जुड़ सकी. नई दिल्ली के जी—20 सम्मेलन में जिस तरह मल्लिकार्जुन खड़गे, अधीर रंजन चौधरी, राहुल गांधी और सोनिया गांधी को आमंत्रण तक नही दिया गया, उसी की टीस मन में पाले हुए कांग्रेस ने रायपुर की जी20 बैठक का बहिष्कार किया.

अब आइए भाजपा पर. केन्द्र में उनकी सरकार है, राज्य में भाजपा विपक्ष में है, इसलिए उम्मीद थी कि कम से कम भाजपा सांसदों, विधायकों को मेहमानों की मेजबानी करने का मौका मिलेगा मगर सब हाथ मलते रह गए. शायद वे मन की बात समझ गए थे. जिज्ञासा तो यह भी है कि इस अंतरराष्ट्रीय बैठक में क्या केन्द्र सरकार के प्रतिनिधि के तौर पर केन्द्रीय राज्यमंत्री रेणुका सिंह शामिल नही हो सकती थीं. जब एक वरिष्ठ महिला आइएएस बैठक की अध्यक्षता कर सकती तो भारत सरकार की केन्द्रीय राज्यमंत्री क्यों नही. आखिर नई दिल्ली में तो पीएम नरेन्द्र मोदी ने ही बैठक की अध्यक्षता की थी.

इससे बड़ा आश्चर्य यह कि जी20 कार्यक्रम की अध्यक्षता करने के लिए जिस विदेशी मेहमान का नाम तय हुआ था, वे भी दिल्ली समिट के बाद अपने देश चलते बने. इसके बाद जैसे तैसे एक ब्यूरोक्रेटस को भेजकर आयोजन की साख बचाई गई. न्यायपरक कदम यह होता कि कम से कम मुख्यमंत्री, राज्यपाल या केन्द्रीय राज्यमंत्री रेणुका सिंह को अध्यक्षता करने का मौका मिलना चाहिए था मगर हाय, ऐसा हो ना सका.

जहां देश की साख और अंतरराष्ट्रीय मसलों की बात होती है तो खर्चा मायने नही रखता. सूत्रों के मुताबिक कार्यक्रम के आयोजन में 30 करोड़ फूंक दिए गए. आयोजन में शरीक होने के लिए 50 देशों से लगभग 80 प्रतिनिधि मौजूद थे. हिसाब लगाइए तो प्रत्येक विदेशी प्रतिनिधि पर सैंतीस लाख पचास हजार रूपये खर्च किया गया. यहां अर्थपूर्ण सवाल यह है कि इतना महंगा आयोजन करने से आखिर देश और राज्य को क्या मिला.

इस महंगे और खास आयोजन की जिम्मेदारी संस्कृति पर्यटन विभाग के उपर थी सो उसने कला—संस्कृति—पर्यटन के कुछ रायपुर केंद्रों को विदेशी मेहमानों के लिए सजाधजाकर रखा था. उल्लेखनीय यह है कि जब 65 देशों के प्रतिनिधि यहां मौजूद थे तब आयोजन के अंतिम दिन किसी गाला लंच या डीनर या सार्वजनिक आयोजन तो किया ही जा सकता था ताकि राज्य के सीएम, राज्यपाल, वीआईपीज, जनप्रतिनिधि, विविध क्षेत्रों के विशेषज्ञ, पदमश्री अवार्डी, मीडिया संपादक, प्रमुख नौकरशाह शामिल होते और संवाद का आदान—प्रदान होता.

हमारे यहां राजा ही राज्य है और नेता ही देश. पूरे देश ने देखा था कि नई दिल्ली में जी20 की बैठक में किस तरह केंद्र सरकार के चेहेते संपादकों और एंकरों को दुबई के प्रधानमंत्री से मिलवाया गया. विभिन्न क्षेत्रों से जुड़ी देश की नामचीन हस्तियां भी आमंत्रित थीं जिनकी तस्वीरें विदेशी मेहमानों के साथ सोशल मीडिया में वायरल हैं. इन सभी ने जी—20 के मेहमानों से भरपूर संवाद किया. फिर छत्तीसगढ़ में यह चूक कैसे हो गई. इसके लिए कौन जिम्मेदार है. संस्कृति विभाग, पीआर एजेंसी या केन्द्र सरकार के कड़े नियम.

दिमाग की विकलांग सोच सारा कबाड़ा करके रख देती है. छत्तीसगढ़ को यह पहला अवसर मिला था, अफसोस कि इतना बड़ा आयोजन चंद ब्यूरोक्रेटस और पीआर एजेंसी तक सिमटकर रह गया. सरकारी बयान है कि बैठक के मद्देनजर 12 एएसपी, 25 डीएसपी, 50 इंस्पेक्टर और 800 जवानों की ड्यूटी लगाई गई थी. कार्यक्रम में राजनीतिक दल और राजनीतिज्ञों को भले ही दूर रखा गया हो, लेकिन कुछ ब्यूरोक्रेटस ने विदेशी मेहमानों के साथ मिलने और सेल्फी लेने का पूरा लुत्फ उठाया.

चाय बिगड़ जाए तो उसे रिपेयर नही कर सकते. छत्तीसगढ़िया स्वाभिमान की बात करें तो यह सवाल जायज है कि इस दुर्लभ अंतरराष्ट्रीय आयोजन से छत्तीसगढ़ के लोगों को ही बाहर रखकर गलत परिपाटी निर्मित की गई है. यहां पर फिल्म का यह डायलाग फिट है कि आयोजन मेरा, पैसा मेरा, आमंत्रण मेरा तो जलवा क्यों तेरा. आयोजन तय होने के पहले ही राज्य सरकार को हदयहीन शर्तनामा दुरूस्त कर लेना था कि उसकी भूमिका क्या होगी अन्यथा बेगानी शादी में अब्दुल्ला दीवाना होने की क्या जरूरत.

जब बहुमत चालाकी करता है तो वह अल्पमत को और भी ज्यादा चालाकी करने का निमंत्रण देता है. माना कि छत्तीसगढ़ के महानदी का पानी विद्रोही किस्म का नही बल्कि शांत और गंभीर है. ऐसी महानता को कुछ लोग कमजोरी समझ रहे हैं, जिसे उघाड़ने का समय आ गया है. छत्तीसगढ़ जैसे राज्यों को भाग्य से ही इस तरह के आयोजन मिलते हैं लेकिन जरूरत से ज्यादा नियम, प्रतिबंध या अनदेखी इसकी सफलता पर ग्रहण लगा देते हैं.

( लेखक दैनिक प्रखर समाचार के स्थानीय संपादक हैं )

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