आज से करीब दो महीने पहले जब सोनिया गांधी के राज्यसभा जाने की खबर आई तो कैमरे के सामने रायबरेली के एक शख्स ने कहा था कि यहां से कोई भी आए जीतेगा कांग्रेस कैंडिडेट ही. आज कांग्रेस ने राहुल गांधी के नाम की घोषणा कर दी है. स्मृति ईरानी ने पिछली बार अमेठी से राहुल को हराया था. इस बार वह मां की सीट रायबरेली से लड़ने गए हैं. सुबह से रायबरेली की काफी चर्चा है. आखिर इलाहाबाद का नेहरू-गांधी परिवार चुनाव लड़ने रायबरेली क्यों चला गया? वैसे, पंडित जवाहरलाल नेहरू इलाहाबाद (प्रयागराज) की फूलपुर लोकसभा सीट से चुनाव लड़ते रहे लेकिन उनके दामाद फिरोज गांधी ने सबसे पहले रायबरेली का रुख किया था. वो किस्सा दिलचस्प है.
फिरोज गांधी ने लड़ा था चुनाव
जी हां, वो पहला आम चुनाव था. 1952 में फिरोज गांधी यहां से जीते थे. दिलचस्प बात यह है कि फिरोज भी इलाहाबाद से ही चुनाव लड़ना चाहते थे क्योंकि वहां की गलियों को ज्यादा करीब से जानते थे. खूब घूमे थे. लेकिन उस दौर में प्रयागराज में एक से बढ़कर एक कांग्रेस नेता मैदान में आ चुके थे. नेहरू, मसुरिया दीन, लाल बहादुर शास्त्री… इनमें से किसी की जगह या खिलाफ में फिरोज के लड़ने का सवाल ही नहीं था. ऐसे में कांग्रेस के एक मुस्लिम नेता रफी अहमद किदवई ने उन्हें सलाह दी.
वो थे किदवई साहब
देश के बड़े नेताओं में शुमार किदवई साहब ने फिरोज से कहा कि आओ रायबरेली चलते हैं. रफी के सिद्धांतों पर चलने वाले उस दौर के नेताओं के समूह को ‘रफीयन’ कहा जाता था. उन्होंने रायबरेली में आजादी के आंदोलन में काफी काम किया था. लोग उन्हें काफी सम्मान देते थे. रफी ने फिरोज का परिचय एक कार्यक्रम में रायबरेली की जनता से कराया. लोगों को जब नेहरू परिवार से कनेक्शन का पता चला तो वे काफी खुश हुए. उन्हें महसूस हुआ कि फिरोज गांधी जीतकर संसद जाएंगे तो उनके लिए अच्छा होगा.
उम्मीदवारी घोषित होने के बाद फिरोज गांधी का प्रचार करने के लिए इंदिरा गांधी भी रायबरेली आती जाती रहती थीं. नेहरू ने भी कई रैलियां की थीं. एक बार इंदिरा की तबीयत खराब हो गई तो नेहरू ने फिरोज से पूछ लिया था कि एक दिन में कितनी रैलियां कर रहे हो, इंदिरा की तबीयत ही खराब हो गई? फिरोज चुप रहे और इंदिरा ने कहा था कि मैं ठीक तो हूं. पति-पत्नी अलग-अलग इलाकों में जनसंपर्क करते थे.
फिरोज बहुत अच्छी हिंदी बोलते थे. नेहरू की बेटी होने के कारण लोग इंदिरा को काफी सम्मान देते थे. उस दौर में यह काफी पिछड़ा इलाका था. फिरोज ने जीतने के बाद रायबरेली में सर्वे कराया था कि यहां कौन सी इंडस्ट्री लगाई जा सकती है. आगे यहां से इंदिरा गांधी, सोनिया गांधी ने भी चुनाव लड़ा. दो बार 1996 और 1998 में ही भाजपा रायबरेली से जीत सकी.
रायबरेली से नेहरू का रिश्ता
आजादी से पहले की बात है. 1921 में रायबरेली के मुंशीगंज इलाके में अंग्रेजों के खिलाफ काफी बवाल हुआ. सभा करने वाले किसान नेताओं को गिरफ्तार किया गया. अफवाह फैली की उनकी हत्या हो गई. सई नदी के किनारे भीड़ लग गई. कांग्रेस ने एक नौजवान नेता नेहरू को भेजा. अंग्रेजों ने किसानों पर फायरिंग शुरू कर दी. प्रशासन ने नेहरू को रोक लिया लेकिन वह नहीं माने और किसानों के बीच पहुंच गए. इस घटना से उनकी जननेता की छवि बनी और अंग्रेजों का जालिम चेहरा भी सामने आ गया. नेहरू का हमेशा के लिए रायबरेली से अलग रिश्ता बन गया.