महामाया मंदिर परिसर में कछुओं की मौत मामले में मंदिर उपाध्यक्ष को कोर्ट से राहत, अग्रिम जमानत मिली

बिगुल
रतनपुर के महामाया मंदिर परिसर में स्थित कुंड में मृत कछुओं के मिलने के मामले में नामजद किए गए महामाया मंदिर ट्रस्ट के उपाध्यक्ष सतीश शर्मा को बिलासपुर हाईकोर्ट से राहत मिल गई है। मुख्य न्यायाधीश रमेश सिन्हा की एकलपीठ ने शर्मा को अग्रिम जमानत दी है। सुनवाई के दौरान अदालत ने न सिर्फ आरोपी के खिलाफ लगाए गए आरोपों की वैधता पर सवाल उठाए, बल्कि मामले में कार्रवाई कर रहे डीएफओ की योग्यता और कानूनी जानकारी पर भी तीखी टिप्पणी की।
बिलासपुर जिले में स्थित शक्तिपीठ रतनपुर के महामाया कुंड में मृत मिले कछुओं की मौत के मामले में पुजारी को भी अभियुक्त बनाया गया है। आरोपी के खिलाफ वन संरक्षण अधिनियम की धारा 9 के तहत मामला दर्ज किया गया है। इस मामले में पुजारी और संस्था के उपाध्यक्ष सतीश शर्मा ने अपनी जमानत के लिए अधिवक्ता के माध्यम से उच्च न्यायालय में एक याचिका लगाई। इस मामले में सोमवार को मुख्य न्यायाधीश रमेश कुमार सिन्हा की बेंच में सुनवाई हुई। इस दौरान 16 अप्रैल 2025 के आदेश के अनुपालन में बिलासपुर डीएफओ और नगर पालिका रतनपुर ने भी शपथपत्र में जवाब पेश किया है।
बिलासपुर डीएफओ की तरफ से शपथ पत्र में पुजारी सतीश शर्मा के खिलाफ वन संरक्षण अधिनियम की धारा 9 के तहत मामला दर्ज किया गया है। इसके खिलाफ याचिकाकर्ता के वकील ने अपना पक्ष रखा और यह कहा कि ये धारा शिकार किए जाने पर लगाई जाती है। जबकि उनके पक्षकार ने कहा कि ट्रस्ट की समिति के निर्णय के बाद मंदिर के मुख्य गेट को खुलवाया था। उन्होंने कोई शिकार नहीं किया। वहीं कोर्ट ने पूछा कि रात को 12:00 बजे कौन सी सफाई होती है? जिस पर अधिवक्ता ने कहा कि मंदिर परिसर के अंदर होने के कारण ऐसा किया गया। श्री सिद्ध शक्तिपीठ महामाया मंदिर ट्रस्ट समिति ने 2 मार्च 2025 को बैठक लेकर नवरात्रि के पहले मंदिर, गार्डन और तालाब की साफ सफाई किया जाना सर्वसम्मति से पारित किए जाने का तर्क रखा।
वहीं यह भी कहा गया कि वन संरक्षण अधिनियम की धारा 9 वन्यजीवों के शिकार को रोकने के लिए लगाई जाती है वहीं धारा 51 पेनल्टी के लिए लगाई जाती है जिसमें वनों और सेंचुरी में किए गए अपराध पर 7 साल की सजा का प्रावधान है। सरकारी अधिवक्ता ने यह बताया कछुआ वन संरक्षण अधिनियम 1972 के अनुसूची एक में आता है। हाईकोर्ट की बेंच ने यह टिप्पणी की ये डीएफओ कौन हैं, क्या पढ़ा है? आईएफएस रैंक अधिकारी हैं, उन्हें यह नहीं मालूम की किस अपराध में क्या मुकदमा दायर करना चाहिए। डीएफओ ने किस तरह एआईआर दर्ज किया है। उसके बाद सरकारी अधिवक्ता ने बताया कि 3 गवाहों के बयान पर अपराध दर्ज किया गया है। वहीं सीसीटीवी फुटेज में भी मामला सामने आया। वहीं दोनों पक्षों को सुनते हुए बेंच ने याचिकाकर्ता कि बेल स्वीकार कर ली है।