सरकारी अस्पतालों में 30 प्रतिशत सिजेरियन डिलीवरी, प्राइवेट में तो चौंकाने वाले आंकड़े

बिगुल
अस्पतालों में सिजेरियन ऑडिट लागू होने के बावजूद सिजेरियन डिलीवरी की संख्या लगातार बढ़ रही है। सामान्य प्रसव की तुलना में सिजेरियन डिलीवरी की दर में तेजी देखी जा रही है। स्वास्थ्य मानकों के अनुसार, सिजेरियन डिलीवरी की अधिकतम दर 15 फीसदी होनी चाहिए, लेकिन सरकारी अस्पतालों में यह आंकड़ा 25 फीसदी से भी अधिक हो चुका है। सरकार द्वारा ‘सिजेरियन ऑडिट’ लागू करने के बावजूद यह दर 15 फीसदी से नीचे नहीं आ पाई। वहीं, निजी अस्पतालों में यह आंकड़ा और भी चौंकाने वाला है, जहां 50 फीसदी तक प्रसव सिजेरियन विधि से हो रहे हैं।
कई निजी अस्पतालों के आंकड़ों के अनुसार, नॉर्मल डिलीवरी की तुलना में सिजेरियन डिलीवरी दोगुनी हो रही हैं। इसका एक मुख्य कारण आर्थिक लाभ भी है। जहां सामान्य डिलीवरी का खर्च 50 हजार रुपये तक होता है, वहीं सिजेरियन डिलीवरी पर एक से डेढ़ लाख रुपये तक का खर्च आता है, जो नॉर्मल डिलीवरी की तुलना में लगभग दोगुना है।
ऑप्टीमाइजिंग सीजर सेक्शन गाइडलाइन प्रदेश में भी लागू
दुनियाभर में सिजेरियन डिलीवरी की दर 45 से 50 फीसदी तक पहुंच चुकी है, जो चिंता का विषय है। इस समस्या के समाधान के लिए आयरलैंड के डॉ. रॉक्सन द्वारा ‘ऑप्टीमाइजिंग सीजर सेक्शन’ नामक गाइडलाइन बनाई गई, जिसे मध्यप्रदेश सरकार ने भी लागू किया है। इस गाइडलाइन में 10 ऐसे मापदंड शामिल किए गए हैं, जिनमें सिजेरियन डिलीवरी को आवश्यक माना गया है। हालांकि, यह निगरानी सिर्फ सरकारी अस्पतालों में की जा रही है, जबकि निजी अस्पतालों में यह नियंत्रण से बाहर है। स्वास्थ्य विभाग के मानकों के विपरीत, निजी अस्पतालों में नॉर्मल डिलीवरी की दर 20 से 30 फीसदी तक सीमित हो गई है। सरकार और फेडरेशन ऑफ ऑब्स्टेट्रिक एंड गायनेकोलॉजिकल सोसाइटीज़ ऑफ इंडिया (फॉग्सी) मिलकर सिजेरियन डिलीवरी की दर को कम करने का प्रयास कर रहे हैं। हालांकि, बढ़ती उम्र में गर्भधारण, पहले सिजेरियन के बाद दूसरे सिजेरियन की अनिवार्यता और प्लेसेंटा संबंधी जटिलताओं के कारण यह चुनौतीपूर्ण होता जा रहा है।