सीजीएमएससी में 411 करोड़ के मेडिकल उपकरण खरीदी घोटाला, हाईकोर्ट ने खारिज की आरोपियों की जमानत याचिका

बिगुल
बिलासपुर हाईकोर्ट ने सीजीएमएससी में 411 करोड़ के मेडिकल उपकरण खरीदी घोटाले के चार आरोपियों की अग्रिम जमानत अर्जी खारिज कर दी है। कोर्ट ने माना कि एसीबी और ईओडब्ल्यू की प्रारंभिक जांच में इनकी भूमिका सामने आई है। लिहाजा जमानत का लाभ नहीं दिया जा सकता है।
ध्यान रहे कि एसीबी और ईओडब्ल्यू की टीम ने मोक्षित कार्पोरेशन व अन्य के खिलाफ धारा 120-बी, 409 आईपीसी और भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम की धारा 13(2), 13(1)(ए), 7(सी) के तहत मामला दर्ज किया है। दरअसल, स्वास्थ्य विभाग ने साल 2021 में उपकरणों और मशीनों की खरीदी की प्रक्रिया शुरू की थी। सीजीएमएससी (छत्तीसगढ़ मेडिकल सर्विसेज कॉर्पोरेशन लिमिटेड) ने 26-27 दिन में 411 करोड़ की खरीदी का आदेश जारी किया।
इसमें आरोप है कि मशीनों की जरूरत का सही आंकलन नहीं किया गया। भंडारण की सुविधा भी नहीं थी। इसके बाद भी बड़ी संख्या में मशीनें खरीदी गईं। रीएजेंट की रख-रखाव की कोई व्यवस्था नहीं थी, फिर भी स्वास्थ्य केन्द्रों में स्टोर करा दिया गया। वहीं सीजीएमएससी के अधिकारियों की ओर से रीएजेंट सप्लाई करने वाली कंपनी को व्यक्तिगत लाभ पहुंचाने की शासन की प्रक्रिया का पालन नहीं करते हुए खरीदी की गई। यह भी आरोप है कि ईडीटीए ट्यूब 2352 रुपए प्रति नग की दर से खरीदी गई, जबकि अन्य संस्थाएं यही ट्यूब 8.50 रुपए में खरीद रही थीं।
इससे करोड़ों का नुकसान हुआ।इसके साथ ही दवा-उपकरण की सप्लाई करने वाले फर्म रिकॉर्डर्स एंड मेडिकेयर सिस्टम्स पर आरोप है कि उसने मोक्षित कॉर्पोरेशन और अन्य कंपनियों के साथ मिलकर टेंडर में गड़बड़ी की। चारों कंपनियों के उत्पाद एक जैसे थे। इससे टेंडर प्रक्रिया में मिलीभगत का संदेह हुआ। केस दर्ज करने के बाद एसीबी और ईओडब्ल्यू की टीम ने मोक्षित कॉर्पोरेशन के डायरेक्टर को गिरफ्तार किया है।
इसके बाद फर्म के प्रमोटर, कर्मचारी पंजाब और हरियाणा निवासी अविनेश कुमार, राजेश गुप्ता, अभिषेक कौशल और नीरज गुप्ता ने संभावित गिरफ्तारी से बचने अग्रिम जमानत याचिका दायर की थी। इसमें कहा गया कि एफआईआर में उनका नाम नहीं है। उनके खिलाफ कोई सीधा आरोप नहीं है। वे केवल कंपनी के कर्मचारी, प्रमोटर, निदेशक और कार्यकारी निदेशक हैं। टेंडर प्रक्रिया में उनकी कोई भूमिका नहीं थी।