किसानों के लिए खुशखबरी, ‘ब्रहास्त्र’ व ‘बीजामृत’ से होगी रबी और खरीफ फसलों की सुरक्षा
बिगुल
इंदौर :- गेहूं, चना, सरसों व सोयाबीन के उत्पादन में अधिकांश किसान अभी तक रासायनिक उर्वरक का ही इस्तेमाल कर रहे हैं। रासायनिक उर्वरक का उपयोग कर तैयार की जा रही फसलों के कारण जहां मृदा के पोषक तत्व खत्म होने से उन्हें नुकसान पहुंच रहा है, वहीं हानिकारक पेस्टीसाइड का मनुष्यों के स्वास्थ्य पर दीर्घकालिक नुकसान भी दिखाई दे रहा है।
यही वजह है कि अब इंदौर स्थित भारतीय सोयाबीन अनुसंधान संस्थान द्वारा महाराष्ट्र, कर्नाटक व आंध्रप्रदेश के कुछ इलाकों में उपयोग की जा रही बीजामृत, जीवामृत, अब ब्रह्मास्त्र प्राकृतिक पद्धति से की जा रही खेती के तरीकों का प्रमाणीकरण करने की कवायद की जा रही है। इससे भविष्य में ज्यादा से ज्यादा किसान खेती में इनका उपयोग कर सकेंगे।
सोयाबीन अनुसंधान संस्थान इंदौर ने प्राकृतिक पद्धतियों के कृषि में उपयोग के प्रमाणीकरण के प्रोजेक्ट को जून माह में शुरू किया है। तीन से पांच वर्षों में इन तकनीकों का प्रमाणीकरण हो सकेगा। सोयाबीन की फसल में फफूंद लगना बड़ी समस्या है। बोअनी से पहले बीज को ‘बीजामृत’ में डालकर बोने से यह समस्या नहीं हो सकेगी। बीजामृत तैयार करने के लिए गिर नस्ल की देशी गाय के 5 किलो गोबर को कपड़े में बांधेंगे और एक ड्रम में 25 लीटर पानी डालकर गोबर बांधे हुए कपड़े को 12 घंटे के लिए छोड़ देंगे।
इसके बाद कपड़े से बांधे गोबर को निचोड़कर निकालेंगे। अब बचे पानी में पांच लीटर गोमूत्र और 50 मिलीलीटर चूना का पानी डालेंगे। उसमें पीपल या बरगद के पेड़ नीचे की एक मुट्ठी मिट्टी जिसमें रसायन न हो, उसे मिलाकर 24 घंटे के लिए छोड़ दें। इस तरह बीजामृत घोल तैयार हो जाएगा। सोयाबीन के बीज की बोअनी करने से पहले उसे बीजामृत में डुबोकर बाहर निकालें व बोअनी यंत्र से खेत में बोएं।
रासायनिक के बजाय ‘जीवामृत’ प्राकृतिक तरीके से फसल को देगा पोषक तत्व
जीवामृत तैयार करने के लिए एक डिब्बे में 200 लीटर पानी लेना है। उसमें 10 किलो गोबर और उसमें पांच से दस लीटर गिर गाय का गोमूत्र डालें। उसमें दो किलो गुड़, 2 किलो बेसन, एक मुट्ठी मिट्टी डालकर उसे लकड़ी की सहायता से पूरे घोल को हिलाएं। इसे 48 घंटे के लिए ढंककर छोड़ दें। 12 घंटे के अंतराल के बाद इस घोल को पुन: हिलाएं। अब यह घोल फसल पर छिड़काव के लिए तैयार है। सोयाबीन की फसल में यह पोषक तत्व के रूप में काम करेगा। 1 लीटर पानी में 10 मिलीलीटर यह घोल मिलाकर छिड़कने से फसल में पोषक तत्वों की कमी पूर्ण हो जाएगी।
जिन इलाकों में पानी की कमी है, वहां जीवामृत के बजाय घनजीवामृत का उपयोग किया सकता है। एक हेक्टेयर खेत के लिए घनजीवामृत को इस तरह तैयार किया जा सकता है। देशी गाय का 500 किलो गोबर लेकर उसे छायादार जगह पर फैला दें। इसमें 20 लीटर जीवामृत का तैयार घोल छिड़क कर मिलाएं। उसके ढेर को इकट्ठा कर 48 घंटे के लिए छोड़ दें। उसे जूट के बोरे से ढंक दें। जब यह सूख जाए तो इसका खेत में खाद के रूप में उपयोग करें।
फसलों में कीड़े लगने की समस्यां के निराकरण के लिए आग्नेयास्त्र व ब्रह्मास्त्र का उपयोग किया जा सकता है। आग्नेयास्त्र को तैयार करने के लिए पांच किलो नीम की पत्ती, एक किलो तंबाकू की पत्ती, आधा किलो तीखी हरी मिर्च, आधा किलो लहसुन को मिलाकर चटनी की तरह पेस्ट बनाएं। उसे 25 से 30 लीटर देशी गोमूत्र में डालें और उसे मटके में गर्म आंच पर झाग आने तक उबालें। अब तैयार घोल को 24 घंटे के लिए छोड़ दें। छानकर घोल निकाल लें, यह स्प्रे के लिए तैयार है।
एक हेक्टेयर खेत में 12 से 16 लीटर इस घोल को 400 से 500 लीटर पानी में मिलाकर का उपयोग किया जा सकता है।